मजदूरी सम्बंधित अधिनियम | कर्मचारी अधिनियम | Wage related act in hindi

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मजदूरी सम्बंधित अधिनियम

दोस्तों दुनिया भर में जब से उद्यम की स्थापना हुई है तब से ही उत्पादकों और कार्य करने वाले कार्मिकों के बीच में आपसी सामंजस्य बनाने का प्रयास चला आ रहा है

और यह जरुरी भी है क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो श्रमिक लोगों का केवल और केवल शोषण ही किया जायेगा इसलिए शासन-प्रशासन भी श्रमिकों के हित को नजर रखते हुए कोई ना कोई कदम उठाती रहती है। 

बड़े-बड़े उद्योगपतियों, कारखानों व मिल मालिकों से कर्मचारियों और मजदूरों के शोषण को रोकने के लिए हमारी सरकार ने अनेक हित सम्बंधित अधिनियम (Welfare Related Acts) बनाये हैं। 

कर्मचारी/मजदूरी सम्बंधित अधिनियम (Employee/Wage Related Acts in hindi)

  • कारखाना अधिनियम (1948)
  • कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम (1948)
  • कर्मकार प्रतिकर अधिनियम (1923)
  • नियोजन स्थायी आदेश अधिनियम (1946)
  • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (1948)
  • मजदूरी संदाय अधिनयम (1936)
  • बोनस भुगतान अधिनियम (1965)
  • प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम (1961)
  • आद्योगिक विवाद अधिनियम (1947)
  • विनिमय एवं उत्पादन अधिनियम (1970)
  • कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम (1952)
  • व्यवसाय संघ अधिनयम (1926)
  • उत्पादन अधिनियम (1976)
  • उत्पादन संदाय अधिनियम (1972)
  • सामान पारिश्रमिक अधिनियम (1976)

इस प्रकार कर्मचारी सम्बंधित अधिनियम या यूँ कहें मजदूरी सम्बंधित अधिनियम बनाये गए हैं हमारे सरकार द्वारा हमारी हितों के रक्षा के लिए। आइये इन्हे विस्तार से समझते हैं।   

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फैक्ट्री या कारखाना अधिनियम (1948) (Factories Act (1948)

कारखाना अधिनियम या फैक्ट्री अधिनियम को भारत के गवर्नर जनरल ने 23 सितम्बर 1948 में मान्यता प्रदान की और 1 अप्रैल 1949 को इसे पुरे देश में लागु कर दिया गया।   

भारतीय कारखाना अधिनियम का उदेश्य

  • श्रमिकों व कामगारों के लिए काम और विश्राम दोनों के लिए समय निर्धारित करना। 
  • आद्योगिक जगहों व संस्थानों में स्वास्थ्य और सुरक्षित माहौल बनाना। 
  • श्रमिकों और मालिक के बीच अच्छे सम्बन्ध का होना। 
  • अगर किसी कारण श्रमिक दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है तब उसे उचित छतिपूर्ति प्रदान करना। 
  • श्रमिकों को उनके कार्य के हिसाब से उचित वेतन प्रदान करना। 
  • श्रमिक के साथ-साथ उनके आश्रितों परिवारजनों के हितों और अधिकार की सुरक्षा करना। 
  • श्रमिकों की वेतन कटौती पर उचित नियम का पालन करना। 
  • कारखानों में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए उचित विशेषज्ञ की नियुक्ति करना। 

कारखाना अधिनियम के तहत के कार्यक्षेत्र

यह अधिनियम उन कारखानों पर लागु होता है जहाँ दस या उससे अधिक श्रमिक लोग कार्य करते हैं इस अधिनियम के तहत क्या-क्या उपबंध किये गए हैं इसे जानते हैं   

अल्पवयस्क रोजगार सम्बंधित उपबंध

  • कारखाने में कार्य करने वाले किसी भी मजदुर व श्रमिक की आयु चौदह वर्ष से कम ना हो। 
  • कारखानों के प्रत्येक मजदुर के पास स्वास्थ्य होने सम्बंधित चिकित्सकीय प्रमाण पत्र होना आवश्यक है। 
  • बाल श्रमिकों को रात्रि दस बजे से सुबह छ बजे तक कारखानों में कार्य करने पर प्रतिबन्ध हो। 
  • प्रत्येक श्रमिक और बाल श्रमिक का विवरण वाला रजिस्टर होना चाहिए जिसमे सभी का विवरण हो। 

श्रम कल्याण सम्बंधित उपबंध

  • कारखानों में कल्याण अधिकारी की नियुक्ति होनी चाहिए। 
  • कहीं पर भी काम चल रहा हो वहां पीने की पानी की उचित व्यवस्था होना चाहिए। 
  • सभी श्रमिक भाइयों के लिए बैठने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए कारखाने में। 
  • प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था प्रत्येक कारखानों में होनी चाहिए। 
  • मजदूरों को भोजन के लिए केंटीन की उचित व्यवस्था हो। 
  • जहां मजदुर कार्य कर रहा हो वहां लाइट की उचित व्यवस्था हो किसी भी प्रकार का अंधेरा ना हो। 

छुट्टी से सम्बंधित उपबंध

  • अगर किसी भी श्रमिक को छुट्टी चाहिए तो वह पंद्रह दिन पहले अवकाश के लिए प्राथना पत्र लिखकर प्रस्तुत कर सकता है। 
  • श्रमिकों को वर्ष में तीन बार से अधिक छुट्टी ना मिलने का नियम होगा। 
  • 240 से अधिक दिन कार्य कर चुके श्रमिक को सवेतन अवकाश दिया जायेगा। 

कार्य करने सम्बंधित उपबंध

  • कारखानों में चौदह वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को कार्य नहीं दिया जायेगा। 
  • किसी भी श्रमिक को 8 घंटे से ऊपर कार्य नहीं कराया जायेगा। 
  • रविवार के दिन किसी भी श्रमिक से कार्य नहीं लिया जायेगा। 
  • श्रमिकों को अगर अतरिक्त कार्य कराया जाये तो उसकी उचित भुगतान भी किया जाना चाहिए। 
  • बच्चों व महिलाओं से कारखानों के खतरनाक कामों को ना करवाया जाये। 
  • किसी भी महिला श्रमिक से सुबह 6 बजे से पहले और शाम 7 बजे के बाद कोई भी कार्य ना कराया जाये। 
  • कोई भी श्रमिक लगातार दस दिन तक कार्य नहीं करेगा। 
  • सभी श्रमिकों के कार्य का विवरण एक रजिस्टर पर होना चाहिए। 

नियमों के उलंघन पर दण्ड व्यवस्था सम्बंधित उपबंध

  • कारखाना अधिनियम के किसी भी नियम का उलंघन करने पर तीन महीने का कारावास या पांच सौ रूपये का जुर्माना दोनों ही दंड दिए जा सकते हैं। 
  • अगर दण्ड पाने के बाद भी कोई नियम का उलंघन करता है तो उसे 75 रूपये रोजाना का जुर्माना के हिसाब से दण्डित किया जा सकता है।
  • दंडित किया जा चूका व्यक्ति दोबारा से अगर वही गलती दुहराता है तो उसे पुनः 6 माह का कारावास और एक हजार रूपये जुर्माना के तोर पर दण्डित किया जा सकता है। 
  • श्रमिकों द्वारा फैक्ट्री अधिनियम के किसी भी नियम का उलंघन पर 20 रूपये जुर्माना लिया जा सकता है। 
  • किसी अवयस्क श्रमिक द्वारा एक साथ दो कारखाना में काम करने पर एक हजार रूपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। 

श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम (1923)

इस अधिनियम का गठन 1923 में किया गया और 1 जुलाई सन 1924 को इसे पुरे भारत में लागु कर दिया गया। इसके अंतर्गत श्रमिक की मृत्यु हो जाने या कोई अन्य कारण जिसके कारण वह कार्य करने में असमर्थ हो गया हो उस क्षति की पूर्ति के लिए यह अधिनियम बनाया गया है।   

अधिनियम किस-किस पर लागु होता है?

  • रेल्वे कर्मचारियों पर यह अधिनियम लागु होता है। 
  • यह अधिनियम ऐसे कर्मचारियों पर लागु होते हैं जो कारखानों व खतरनाक जगहों पर कार्य करते हैं। 
  • राज्य बीमा एक्ट के अधीन कार्य करने वाले कर्मचारी इस अधिनियम के तहत नहीं आते। 

उपबंध (Provisions)

  • इस अधिनियम के अनुसार यदि कोई श्रमिक कार्य करते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो जाये तो उसे क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है। 
  • इस अधिनियम के तहत अगर कोई श्रमिक दुर्घटनाग्रस्त हो जाये व जिसके परिणामस्वरूप उसकी मौत हो जाये तब इस स्थिति में क्षति पूर्ति पाने का अधिकार है। 
  • यदि श्रमिक अपनी लापरवाही जैसे शराब के नशे में धुत होकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है तब ऐसे में क्षति पूर्ति पाने का अधिकार नहीं होगा। 
  • इस अधिनियम में 1984 में हुए संसोधन के अनुसार यदि श्रमिक किसी दुर्घटना में स्थायी रूप से हमेसा के लिए अयोग्य हो जाता है तो न्यूनतम 24000 और अधिकतम 70000 मिलेगा। 
  • यदि किसी श्रमिक की मृत्यु उसके ड्यूटी के दौरान हो जाती है तब क्षतिपूर्ति की न्यूनतम राशि 20000 रूपये तथा 1 लाख 14000 रूपये होगी।

कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948

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यह अधिनियम जिन कर्मचारियों पर लागु होता है वह हैं 

  • जिनका मासिक वेतन 6500 रूपये से कम हो। 
  • ऐसे कारखाने में काम करता हो जहाँ विद्युत शक्ति का प्रयोग होता हो और 20 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हो। 
  • ऐसे कारखाने में कार्यरत हो जहाँ विद्युत शक्ति का प्रयोग नहीं होता हो और वहां दस से अधिक कर्मचारी कार्यरत हो। 
  • इस अधिनियम के तहत उन कर्मचारी पर भी लागु होता है जो दुकानों, होटलो, सिनेमाघरों, समाचार-पत्र इत्यादि में काम करते हैं। 

बीमारी हित लाभ (Disease welfare benefit)

  • लम्बी बीमारी जैसी स्थिति हो जाने पर कर्मचारी को सवैतनिक अवकाश पाने का अधिकार है। 
  • चिकित्सा अधिकारी के बीमारी प्रमाण पत्र के आधार पर कर्मचारियों के बीमारी की स्थिति में औसत मासिक वेतन के लगभग आधे के बराबर देय होगा। 
  • इस प्रकार के लाभ का फायदा उठाने के लिए चिकित्सा अधिकारी द्वारा दिया गया चिकित्सा प्रमाण पत्र होना चाहिए। 

प्रसूति लाभ (Delivery benefit)

इस अधिनियम के तहत शादीसुदा महिला कर्मचारियों को निम्न लाभ होगा 

  • 12 सप्ताह की अवधि के लिए प्रसूति प्रसुविधा प्राप्त करने का अधिकार रहता है। 
  • 75 पैसे प्रतिदिन या उससे ज्यादा बीमारी लाभ पाने का अधिकार होता है। 
  • यदि बीमासुदा महिला की मृत्यु उसके प्रसव के दौरान हो जाती है तो उस महिला से सम्बंधित व्यक्ति को प्रसूति लाभ के लिए दावा करने का अधिकार होता है यदि उस महिला का नवजात शिशु प्रसव के दौरान बच जाता है। 
  • यदि प्रसव के दौरान बीमासुदा महिला और उसके नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है तब लाभ की अदायगी उस शिशु के मृत्यु के दिनों तक दी जाएगी। 
  • गर्भपात हो जाने की परिस्थती में उसका पर्याप्त सबूत पेश करने पर बीमासुदा महिला को प्रसूति लाभ का अधिकार होता है। 
  • बीमासुदा महिला कर्मचारी के पात्रता की शर्तों को पूरा करने पर एवं अपने दावे के समर्थन में पर्याप्त सबूत पेश करने पर उसे प्रसूति लाभ का अधिकार होता है। 

प्रसूति लाभ का दावा निम्न स्थितियों में लिया जा सकता है –

  1. गर्भपात 
  2. प्रसूति 
  3. समय से पहले बच्चे का जन्म 
  4. गर्भपात से उत्पन्न होने वाली बीमारी 

अयोग्यता लाभ

इसके अंतर्गत निम्न लाभ का प्रावधान है –

  • स्थायी रूप से आंशिक अयोग्यता लाभ। 
  • स्थायी रूप से पूर्ण अयोग्यता लाभ। 
  • अस्थायी रूप से अयोग्यता लाभ 

चिकित्सा लाभ

इसके तहत बीमासुदा कर्मचारियों को निम्न सुविधा दी जाती है। 

  • चिकित्स्कीय देख-रेख। 
  • चिकित्सकीय सुविधाएं। 
  • औसधियाँ। 
  • बाह्य रोगी उपचार। 
  • अस्पताल में अतरंग रोगी के रूप में उपचार। 
  • बीमासुदा कर्मचारी के घर पर चिकित्सकों द्वारा रोजाना दौरा। 
  • औषधालय या अन्य संस्थानों में परिचर्या 

दाह संस्कार लाभ

यह लाभ बीमासुदा कर्मचारी के मृत्यु होने की स्थिति में परिवार के ऐसे जीवित व्यक्ति को दिया जाता है जो मृत कर्मचारी के अंतिम संस्कार पर लाभ की को खर्च करता है। इस प्रकार के लाभ के लिए मृतक कर्मचारी के मृत्यु के तीन महीने के अंदर दावा पेश करना चाहिए।   

आश्रित लाभ

कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अंतर्गत फैक्ट्री दुर्घटना के फलस्वरूप मृत्यु होने की स्थिति में कर्मचारी के आश्रितों को निम्न लाभ देने का प्रावधान है। 

  • मृत कर्मचारियों की विधवा स्त्रियों के लिए कर्मचारी के आधे औसत वेतन का 2/5 भाग उनके जीवनपर्यन्त देने का प्रावधान है। 
  • मृत कर्मचारी के नाबालिग पुत्रों को अठारह वर्ष की आयु तक कर्मचारी के आधे औसत वेतन का 2/5 भाग दिए जाने का प्रावधान है। 
  • मृत कर्मचारी की अविवाहित पुत्रियों को अठारह वर्ष की आयु तक या उनके विवाह होने तक कर्मचारी के आधे औसत वेतन का 2/5 भाग देने का प्रावधान है। 
  • मृत कर्मचारी के कोई पुत्र, पुत्री या पत्नी नहीं होने की स्थति में आश्रित लाभ कर्मचारी के निकट सम्बन्धी को देने का प्रावधान है। 
  • यदि मृत कर्मचारी का कोई भी आश्रित नहीं है तो उसके अंतिम संस्कार के समय सौ रूपये देने का प्रावधान है। 

मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936 (Payment of wages act 1936)

मजदूरी भुगतान अधिनियम को वेतन भुगतान अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है। इस अधिनियम का उदेश्य है कर्मचारियों को समय पर उनकी मजदूरी भुगतान करना एवं उनकी मजदूरियों से अनावश्यक कटौतीयों को रोकना। नए संसोधन के अनुसार इस अधिनियम के अंतर्गत वे सभी कर्मचारी आते हैं जो 1000 रूपये मासिक वेतन पाते हैं, इस अधिनियम के तहत प्रावधान –

  • राज्य सरकार मजदूरों के हितो एवं अधिकार की सुरक्षा हेतु नियम व कानून बनाकर इसे लागु कर सकता है। 
  • इस अधिनियम में मजदुर भुगतान सम्बंधित नियमों, समय एवं मजदूरी में कटौती सम्बंधित नियमों का प्रावधान है। 
  • इस अधिनियम में जुर्माने की किस्म एवं उसकी राशि तय करने का भी प्रावधान है। 
  • अधिनियम के अनुसार मजदूरी भुगतान की अवधि, तिथि एवं समय तय करने का प्रावधान है साथ ही यह भी उल्लेखित है कि मजदूरी भुगतान की अवधि एक महीने से अधिक नहीं होनी चाहिए। 
  • इस अधिनियम के अनुसार किसी श्रमिक की सेवा समाप्त हो जाने या उसे निष्कासित किये जाने की स्थति में दूसरे ही दिन वेतन भुगतान का प्रावधान है। 
  • इस अधिनियम के अनुसार जिस संस्थानों में 1000 से कम श्रमिक कार्यरत हो वहां अगले महीने की 7 तारीख तथा 1000 से अधिक श्रमिक कार्यरत हो वहां अगले महीने का 10 तारीख तक भुगतान कर देने का प्रावधान है साथ ही नगद भुगतान का भी प्रावधान है। 

कटौती प्रावधान

मजदूरी भुगतान अधिनियम के अनुसार श्रमिकों की मजदूरियों में से निम्नलिखित कटौती की जा सकती है –

स्वैछिक कटौती

इस प्रकार की कटौती श्रमिक अपने इक्षा के अनुसार देश हित में देता है जैसे – बाढ़ राहत कोष, भूकंप राहत कोष इत्यादि। 

अनुपस्थति कटौती

इस प्रकार की कटौती तब लागु होता है जब कोई श्रमिक बिना बताये अपने कार्य से अनुपस्थित रहता है उस दिन का पेमेंट काट लिया जाता है।   

आयकर कटौती

आयकर सीमा के अंतर्गत आने वाले सभी श्रमिकों के वेतन से एक निश्चित रकम के रूप में आयकर कटौती की जाती है।   

बीमा कटौती

श्रमिकों के हितों की सुरक्षा सम्बन्धी यदि कोई बीमा स्कीम सरकार द्वारा लागु की जाती है तो उसकी एक निश्चित राशि श्रमिकों के वेतन से काटा जा सकता है। 

आवास सुविधा सम्बंधित कटौती

यदि श्रमिक को आवास की सुविधा उपलब्ध कराइ जा रही हो तब इस स्थति में उसके वेतन से रकम काटी जा सकती है।   

भविष्य निधि कटौती

इसके अंतर्गत कर्मचारी अपने इक्षा से या संस्थान के द्वारा कहे जाने पर अपने भविष्यनिधि पर पैसे जमा करता है जिसकी कटौती उसके वेतन से होता है।   

आद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 (Industrial dispute act 1947)

काम के बदले में उचित वेतन भुगतान व अन्य सुविधाएँ कर्मचारियों के अधिकार माने गए हैं जिसका हनन होने पर मजदूरों या कर्मचारियों को अदालत का सहारा लेना पड़ता है। जो नियोक्ता और कर्मचारियों के मध्य औद्योगिक विवाद को उत्पन्न करते हैं।

उन्ही औद्योगिक विवादों को सुलझाने हेतु सन 1947 में आद्योगिक विवाद अधिनियम को लागु किया गया जिसका प्रमुख उदेश्य नियोजकों और उसके मजदूरों के बीच औद्योगिक विवाद को परस्पर समझौते द्वारा सुलझाना है।   

इस नियम के अनुसार –

  • नियोक्ता और श्रमिकों के बीच के आद्योगिक विवादों को सुलझाने हेतु राज्य सरकार द्वारा सुलह अधिकारीयों की नियुक्ति की जाती है। 
  • किसी औद्योगिक विवाद की न्यायिक जांच के लिए जांच न्यायालय का गठन करने का प्रावधान है। 
  • इस अधिनियम के अंतर्गत किसी औद्योगिक विवाद के न्यायनिक समाधान के लिए श्रम न्यायालयों के गठन का भी प्रावधान है। 
  • इस अधिनियम के तहत उद्योग न्यायाधिकरण के गठन का प्रावधान है जहाँ वेतन सम्बन्धी, कार्य सम्बन्धी, विश्रामवकास सम्बन्धी क्षति पूर्ति सम्बंधित विवादों का समाधान किया जाता है। 
  • इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायाधिकरणों के गठन का प्रावधान है। जहाँ उन औद्योगिक विवादों का समाधान होता है जो राष्ट्रीय महत्व के होते हैं। 

ठेका श्रमिक नियमन और उन्मूलन अधिनियम 1970 (Contract labour regulation and abolition act 1970)

इसका गठन 1970 में किया गया इसका उदेश्य –

  • ठेकेदारों द्वारा ठेके पर नियुक्त किये गए कर्मचारियों के हितों एवं अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करता है। 
  • ठेके पर रखे गए कर्मचारियों मजदूरों की रोजगार को नियमित करना। 

इस अधिनियम में निम्न प्रावधान हैं –

  1. सभी ठेकेदार के पास लाइसेंस अनिवार्य रूप से होना चाहिए जिसके आधार पर वे श्रमिकों की नियुक्ति कर सके। 
  2. इस अधिनियम से सम्बंधित मामलों पर राय देने के लिए एक केंद्रीय सलाह बोर्ड का गठन किया जाता है। 
  3. वेतन का उचित समय पर ठेकेदार द्वारा भुगतान किया जाना नहीं तो उचित कार्यवाही। 
  4. श्रमिकों को अगर किसी वजह से रात रुकना है इस स्तिथि में महिला और पुरुषों को अलग अलग विश्राम कक्ष की व्यवस्था हो और कक्ष प्रकाशयुक्त हो। 
  5. केंटीन की सुविधा उपलब्ध हो। 
  6. प्राथमिक उपचार की व्यवस्था होना चाहिए। 
  7. ठेका श्रमिक अधिनियम का उलंघन करने पर एक हजार रूपये का जुर्माना या 3 महीने का कारावास या फिर दोनों का ही प्रावधान है। 

हड़ताल एवं कामबंदी (Strike and work-down)

जब श्रमिकों कामगारों की मांग को नियोक्ताओं द्वारा पूरा नहीं किया जाता तब श्रमिक हड़ताल व कामबंदी का सहारा लेते हैं  कर्मचारियों द्वारा काम बंद किया जाना व नियोक्ता द्वारा काम बंद करना अवैध माना जायेगा यदि –

  • उसका सहारा कार्यवाही के प्रथम छ माह के भीतर समुचित नोटिस दिए बिना लिया जाता है। 
  • उसका सहारा ऐसे नोटिस को दिए जाने के 14 दिन के भीतर लिया गया हो। 
  • यदि नोटिस में वर्णित कार्यवाही तिथि के समाप्त होने के पूर्व की गई हो। 
  • फैक्ट्री का स्थायी रूप से बंद हो जाना नियोक्ता द्वारा अस्थायी रूप से व्यवसाय समाप्त कर देना इत्यादि कामबंदी के अंतर्गत आते हैं।  

छटनी Sorting : जब किसी कारणवस श्रमिक की सेवाएं अचानक समाप्त कर दी जाती है यह स्थति छटनी कहलाती है।   

कर्मचारी भविष्य निधि कोष अधिनियम 1952 (Employee provident fund act 1952)

कर्मचारियों को वृद्धावस्था में उनकी सेनानिवृति के बाद उनके हितों और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कर्मचारी भविष्य निधि कोष अधिनियम का गठन 1952 में किया गया। यह अधिनियम कारखानों एवं अन्य प्रतिष्ठानों में लागु होता है।

यह अधिनियम उन प्रतिस्थानो में लागु होता है जहाँ 20 से अधिक श्रमिक कार्य करते हैं। पर उन प्रतिष्ठानों में लागु नहीं होता है जहां 50 से कम श्रमिक बिना विद्युत आपूर्ति के काम करते हैं।   

कर्मचारी भविष्य निधि कोष अधिनियम लागु होने की शर्ते –

  • निर्माण प्रक्रिया का कार्य एक इकाई में होना चाहिए। 
  • निर्माण प्रक्रिया उस उत्पाद की होनी चाहिए जो अनुसूची में वर्णित हो। 
  • निर्माण प्रक्रिया में कम से कम 20 श्रमिक कार्यरत होने चाहिए। 

उद्देश्य (Objects) : कर्मचारी भविष्य निधि कोष अधिनियम के उदेश्य 

  • कर्मचारियों की सेवानिवृति के पश्चात उनके भविष्य की सुरक्षा करता है। 
  • कर्मचारियों की मृत्यु होने पर उनके आश्रित परिवार के जीवन निर्वाह हेतु सुरक्षा प्रदान करता है। 
  • बचत को बढ़ावा देता है। 

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 (Minimum wages act 1948)

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का उदेश्य –

  • औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों एवं कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान आवश्यक है। 
  • न्यूनतम मजदूरी दर का समय-समय पर संसोधन किया जाना अनिवार्य है। 
  • दैनिक मजदूरी पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को न्यूनतम निर्धारित रकम के अनुसार मजदूरी का भुगतान आवश्यक है। 
  • पुरे दिन कार्य करने वाले श्रमिकों एवं आधे या पार्ट टाइम कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए अलग-अलग न्यूनतम मजदूरी दर से भुगतान आवश्यक है। 
  • अगर कोई मजदुर ओवर टाइम कार्य करता है तब इसके लिए अलग से मजदूरी का भुगतान आवश्यक है। 
  • जिस औद्योगिक स्थान में मजदूरों की शोषण की सम्भावना अधिक होती है वहां श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन का निर्धारण अति आवश्यक है। 
  • इस अधिनियम के अनुसार कोई भी नियोक्ता अपने श्रमिकों को घोसित न्यूनतम दर से कम वेतन का भुगतान नहीं कर सकता। 
  • इस अधिनियम का मुख्य उदेश्य श्रमकों को किसी भी प्रकार के शोषण से रोकना है।

औद्योगिक नियोजन स्थायी आदेश 1946 (Industrial employment standing order 1946)

औद्योगिक नियोजन अधिनियम अप्रैल 1946 में लगाया गया था।  इस अधिमियम के निम्नलिखित उदेश्य थे –

  • श्रमिकों और नियोक्ताओं के बीच उत्पन्न हुए औद्योगिक विवादों को सुलझाना। 
  • कर्मचारों की नियुक्ति एवं उन्हें हटाए जाने सम्बंधित नियमों का निर्धारण करना। 
  • कर्मचारियों का वर्गीकरण उनके कार्य की अवधि अवकास की अवधि और मजदूरी दर सम्बन्धी नियमो का निर्धारण करना। 
  • कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही सम्बंधित नियमों का निर्धारण करना। 
  • कर्मचारियों की उपस्तिथि, उनका देरी से आना, अपने शिफ्टों का निर्धारण करना, अपनी छुट्टिया निर्धारित करना। 

कार्यक्षेत्र, कहा पर यह अधिनियम लागु होता है?

उन सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में लागु होता है जहाँ कार्य करने वाले श्रमिक की संख्या 100 या उससे अधिक हो। इस अधिनियम के कार्यक्षेत्र में कर्मचारियों और नियोक्ता के मध्य विवादों को सुलझाना एवं कर्मचारियों की सेवा शर्तों का निर्धारण करना शामिल है।  इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित उपबंध हैं –

  • अंतिम रूप से जारी किये गए स्थायी आदेश को औद्योगिक प्रतिष्ठानों की प्रवेश द्वार पर लगाना आवश्यक है ताकि आते-जाते कर्मचारियों की नजर उस पर पड़ती रहे और ध्यान रहे कि आदेश की भाषा ऐसी हो जिसे प्रत्येक कर्मचारी पढ़ सके। 
  • इस अधिनियम के अनुसार अंतिम रूप से प्रमाणित आदेश में संसोधन स्थायी आदेश के प्रमाणित होने के छ महीने के भीतर करने का प्रावधान है। 
  • प्रमाणित स्थायी आदेश को 30 दिनों के भीतर लागु करने का प्रावधान है। 
  • प्रमाणित स्थायी आदेश के विरुद्ध 30 दिनों के भीतर ही अपील करने का प्रावधान है। 
  • स्थायी आदेशों का सुचारु रूप से पालन करने की समस्त जिम्मेदारी स्थायी आदेश प्रमाणित करने वाले अधिकारी की ही होती है। 
  • स्थायी आदेश को पारित होने के बाद उसे लागु करने के उदेश्य से एक समिति का गठन करने का प्रावधान है। 

इस समिति के सदस्य में निम्न सदस्य शामिल होते हैं –

  1. आदेश प्रमाणित करने वाला अधिकारी। 
  2. अपील सुनने वाला अधिकारी। 
  3. मुख्य श्रम आयुक्त। 
  4. संयुक्त मुख्य आयुक्त। 

कर्मकार प्रतिकर अधिनियम 1923 (Workmen’s Compensation Act 1923) यह अधिनियम उन श्रमिकों के हित के लिए है जिन्हे औद्योगिक प्रतिष्ठानों में काम करते हुए अनेक प्रकार के जोखिमों का सामना करना पड़ता है।  इस अधिनियम का उदेश्य –

  • कर्मचारियों द्वारा कार्य करने के क्रम में होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने का प्रयास करना। 
  • दुर्घटना के कारण आशक्त हुए श्रमिकों को उचित क्षतिपूर्ति कराना। 
  • श्रमिकों को दुर्घटना से होने वाली परेशानियों और कस्टो से बचाना। 
  • इस अधिनियम के द्वारा दुर्घटनाग्रस्त कर्मचारियों को उचित मुआवजा दिलवाने के लिए नियोक्ताओं के ऊपर क़ानूनी दबाव बनाना। 

कार्य क्षेत्र (Work area) यह अधिनियम उन उद्योग प्रतिष्ठानों में लागु होता है, जो अधिनियम के अंतर्गत आते हैं कर्मचारियों को नियोजन के कारण एवं नियोजन के क्रम में दुर्घटनाग्रस्त होने की स्तिथि में यह अधिनियम उन कर्मचारियों को संरक्षण प्रदान करता है।   

आखिर में 

उम्मीद करते हैं कि आपने जिस जानकारी को प्राप्त करने के लिए, हमारा यह लेख मजदूरी संबंधित अधिनियम, कर्मचारी सम्बंधित अधिनियम Wage related acts in hindi. पढ़ा, वह जानकारी आपको प्राप्त हुई हो.

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