प्रेरक प्रसंग (Prerak Prasang in hindi) : इस लेख में हमने बेहतरीन प्रेरक प्रसंग (ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक हिंदी कहानी) के संग्रह को प्रस्तुत किया है, जो कहने को तो लघु कथा के रूप में है परन्तु आपके विचार में एक बड़ा बदलाव लाने की काबिलियत रखता है।
मुझे पूरी उम्मीद है कि इन प्रेरक प्रसंगो (Prerak prasang in hindi) को पढ़ने के बाद आपमें सकारात्मक ज्ञान का विकास होगा इसलिए अपने मानसिक सकारात्मकता को मजबूत करने के लिए यह लेख पूरा अवश्य पढ़ें।
16 बेहतरीन प्रेरक प्रसंगों का समूह – 16 Prerak Prasang in hindi
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1. घमण्ड – एक राजा की कहानी, प्रेरक प्रसंग – Arrogance prerak prasang
एक राज्य के राजा ने अपने बढ़ते उम्र को देखकर, यह फैसला किया की वह राज-पाठ से सन्यास ले लेगा। परन्तु उसका कोई पुत्र नहीं था जिसे वह राज्य सौप कर जिम्मेदारी से मुक्त होता। राजा की एक पुत्री थी जिसकी विवाह की योजना भी राजा को बनानी थी।
इसलिए उसने मंत्रियों को बुलवाया और कहा की कल प्रातः जो भी व्यक्ति सबसे पहले इस नगर में प्रवेश करेगा उसे यहाँ का राजा नियुक्त किया जाएगा, और मेरी पुत्री का विवाह भी उसी के साथ कर दिया जायेगा।
फीर अगले दिन राज्य के सैनिकों ने फटेहाल कपडे पहने एक युवक को ले आये और उसका राज्य अभिषेक किया गया। राजा अपनी पुत्री का विवाह उस युवक के साथ करके, जिम्मेदारियों को सौप कर स्वयं वन प्रस्थान कर गए।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और उस युवक ने राज्य की बागडोर संभाल ली और एक अच्छे राजा की तरह राज्य की सेवा में लग गया। उस महल में एक छोटी सी कोठरी थी, जिसकी चाबी राजा हमेशा अपने कमर में लटकाये रहता था।
सप्ताह में एक बार वह उस कोठरी में जाता आधा एक घंटा अंदर रहता और बाहर निकल कर बड़ा सा ताला उस कोठरी में लगा देता था, और अपने अन्य कार्यों में लग जाता।
इस तरह राजा के बार-बार उस कमरे में जाने से सेनापति को अचम्भा होता कि राज्य का सारा खजाना, सारे रत्न, मणि, हीरे, जवाहरात तो खजांची के पास है। सेना की शस्त्रा गार की चाबी मेरे पास है और अन्य बहुमूल्य कागजातों की चाबी मंत्री के पास है।
फ़िर इस छोटे से कोठरी में एसा क्या है, जो राजा यहां हर सप्ताह अंदर जाता है। और थोड़ी देर बाद बाहर निकल आता है।
सेनापति से रहा नहीं गया उसने हिम्मत करके राजा से पूछा की राजन, यदि आप क्षमा करें तो यह बताइये कि उस कमरे में एसी कौन सी वस्तु है, जिसकी सुरक्षा की आपको इतनी फ़िक्र है।
राजा गुस्से से बोले सेनापति, यह तुम्हारे पूछने का विषय नहीं है, यह प्रश्न दोबारा कभी मत करना। अब तो सेनापति का सक और भी बढ़ गया, धीरे-धीरे मंत्री और सभासदों ने भी राजा से पूछने का प्रयाश किया परन्तु राजा ने किसी को भी उस कमरे का रहस्य नहीं बताया।
बात महारानी तक पहुंच गयी और आप तो जानते है की स्त्री हट के आगे किसी की भी नहीं चलती, रानी ने खाना-पीना त्याग दिया और उस कोठरी की सच्चाई जानने की जिद करने लगी।
आख़िरकार विवश होकर राजा सेनापति व अन्य सभासदों को लेकर कोठरी के पास गया और दरवाजा खोला, जब कमरे का दरवाजा खुला तो अंदर कुछ भी नहीं था सिवाय एक फटे हुए कपडे के जो दीवाल की खुटी पे लटका था।
मंत्री ने पूछा की महाराज यहा तो कुछ भी नहीं है।
राजा ने उस फटे कपडे को अपने हाँथ मे लेते हुए उदास स्वर में कहा कि यही तो है मेरा सबकुछ, जब भी मुझे थोड़ा सा भी अहंकार आता है, तो मै यहाँ आकर इन कपड़ों को देख लिया करता हूँ।
मुझे याद आ जाता है की जब मै इस राज्य में आया था तो इस फटे कपडे के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं था। तब मेरा मन शांत हो जाता है और मेरा घमण्ड समाप्त हो जाता है, तब मै वापस बाहर आ जाता हूँ।
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2. मनुष्य के लिए अनमोल उपहार – प्रेरक प्रसंग (gift prerak prasang in hindi)
भगवान ने मनुष्य को खुशियों का खजाना दिया परन्तु अफ़सोस की बात है की मनुष्यों ने इस अनुपक खजाने का मोल समझ नहीं पाया और हमेसा दुरूपयोग किया।
इससे भगवान को अत्यंत दुःख हुआ और उन्होंने देवताओं की एक सभा बुलाई और सभी देवताओं से चर्चा किया की मनुष्यों को इस अनमोल उपहार का ज्ञान किस तरह कराया जाये।
चर्चा चली फिर एक देवता ने कहा, यह तो बिल्कुल सरल है भगवन, आप ने ही मनुष्यों को को यह अनुपम उपहार दिया है। सो मनुष्यों को इसकी कद्र नहीं है तो आप इसे वापस ले लीजिये।
भगवन बोले, नहीं कभी नहीं उपहार मनुष्यों को दिया जा चूका है और दिए हुए उपहार को वापस लेना सोभा नहीं देता। दूसरे देवता बोले, भगवन हम इस उपहार को किसी ऐसी जगह छुपा देते हैं जिससे मनुष्य इसे आसानी से ढूंढ ना सके।
अन्य देवतागण बोले, परन्तु वह जगह कौन सा होगा जहाँ उपहार को छुपाया जाये। कोई देवता बोले इसे समुद्र की गहराई में छुपा देते हैं। भगवन बोले – मनुष्य समुद्र की गहराई में भी गोता लगाकर इसे प्राप्त कर कर लेगा।
अन्य देवतागण बोले – तो चलिए इसे समुद्र के बीचो बीच दबा देते हैं। भगवन बोले, मनुष्य ऐसे-ऐसे मशीनों का अविष्कार कर लेगा, जो जमींन की गहराइयों को भी खोद कर यह उपहार प्राप्त कर लेगा।
इस तरह चर्चा चलती रही, परन्तु कोई सुझाव ही पसंद नहीं आ रहा था। भगवान एक-एक करके सारे सुझाव को नकारते ही जा रहे थे। बहुत सोंच विचार के बाद अंत में स्वयं भगवन को एक सुझाव आया।
भगवन बोले – इस उपहार को मनुष्य के भीतर ही छुपा दिया जाये, मनुष्य अपने बाहार, आस-पास हमेसा खुशियां और प्रसन्ता ढूंढता रहेगा परन्तु खुशियों का उपहार उसके भीतर ही होगा।
केवल वही व्यक्ति इस अनमोल उपहार को पा सकेगा, जो इस दुनिया को छोड़ अपने भीतर झांक पायेगा।
दोस्तों प्रसंग का तात्पर्य यह है की हम खुशियों को अपने आस-पास ढूंढते रहते है परन्तु खुशियों का अनमोल खजाना तो हमेसा हमारे भीतर ही विद्यमान रहता है।
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3. अंधे बुजुर्ग की वाणी – प्रेरक प्रसंग (old man prerak prasang in hindi)
एक समय की बात है एक राजा जंगल में भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते-करते राजा को प्यास लगी, पानी के लिए इधर-उधर नजर दौड़ने के बाद उन्हें एक झोपडी दिखाई दी। जहां एक अँधा बुजुर्ग आदमी बैठा हुआ था और उसके पास ही जल से भरा हुआ एक मटका रखा हुआ था।
राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया की वे उस व्यक्ति के पास जाये और एक लोटा जल मांग कर लाएं। सिपाही उस व्यक्ति के पास चले गए और उस व्यक्ति से बोलने लगे – ऐ अन्धे एक लोटा पानी दे दे।
अँधा व्यक्ति तुरंत अकड़ कर बोला – चल-चल यहां से निकल, तेरे जैसे सिपाहियों से मै नहीं डरता, तुम लोगों को एक बून्द भी पानी नहीं दूंगा मैं। सिपाही निराश होकर लौट आये। उसके बाद राजा ने सेनापति को पानी लाने के लिए भेजा।
सेनापति उस व्यक्ति के पास जाकर बोला – ऐ अन्धे, पानी दे दे, तुझे बहुत सारे रकम इनाम में मिलेगा। अन्धा व्यक्ति फिर अकड़ कर बोला – पहले वाले का यह सरदार मालूम पड़ता है। अन्धे व्यक्ति ने गुस्से से कहा चल यहाँ से निकल, नहीं मिलेगा पानी तुझे। इस तरह सेनापति को भी खाली हाँथ वापस लौटना पड़ा
सेनापति को खाली हाँथ वापस आता देख राजा स्वय चल पड़े उस व्यक्ति के पास पानी मांगने। फिर उस वृद्धजन के पास पहुंचकर सबसे पहले उसे नमस्कार किया और कहा – प्यास से गला सुख रहा है बाबा, एक लोटा पानी दे सकें तो आपकी बड़ी कृपा होगी।
अन्धे बुजुर्ग ने सत्कारपूर्वक उन्हें पास बिठाया और कहा ” आप जैसे श्रेष्ट व्यक्ति का राजा जैसे आदर है ” एक लोटा जल क्या मेरा सब कुछ आपकी सेवा में हाजिर है, कोई और सेवा हो तो बताइये।
राजा ने सीतल जल से अपनी प्यास बुझाई फिर नम्र वाणी से पूछा की आपको तो दिखाई नहीं पड़ रहा फिर आपने जल मांगने आये लोगों को कैसे पहचान लिया।
उस अन्धे व्यक्ति ने कहा – वाणी से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है।
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4. श्रद्धा और विश्वास प्रेरक प्रसंग – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक हिंदी कहानी
एक बहुत ही पढ़े लिखे सूट, बूट, टाई में रहने वाले बाबूजी थे। वे बाबूजी हमेशा अंग्रेजी में ही बात किया करते थे चाहे किसी को डाटना हो, या प्यार करना। आशीर्वाद भी अंग्रेजी में दिया करते थे।
उनका एक लड़का था सोनू, वह एक दिन अचानक बीमार पड़ गया, बाबूजी परेशान हो गए डॉक्टरों को बुलवाया, वैद्य हकिम, भी आये सबने दवाई दी परन्तु उनका लड़का सोनू फिर भी ठीक न हुआ और उसकी बीमारी बढ़ती ही गयी।
फिर एक दिन एक साधु बाबा आये, उन्होंने बाबूजी जी को कहा की भगवान् में प्रसाद और सिंदूर वगरा कुछ सामान चढ़ा दो, तो आपका लड़का ठीक हो जायेगा।
इतने में बाबू जी ने कहा की मुझे पत्थर वगरा पर यकीन नहीं है। फीर भी तुम कहते हो और मेरे बेटे के बीमारी का सवाल है तो ठीक है मै यह कर लूंगा। एसा बोल कर बाबूजी बेटे के ठीक होने के लालच में इतना कर आये।
परन्तु सोनू की बीमारी वैसे की वैसी थी कोई सुधार नहीं हो रहा था। और सवेरे गुस्से से साधु बाबा के पास गए और बोले की मेरा बेटा ठीक नहीं हुआ उसकी तबियत अभी भी वैसी की वैसी है। साधु बाबा बोले लाओ मुझे सिंदूर, प्रसाद दो
फीर साधु बाबा ने पूजा अर्चना की और पूजा का सिंदूर लेकर लड़के के सर पर लगाया। कुछ देर में लड़का उठ कर बैठ गया और उसकी बीमारी भी ठीक हो गया।
बाबूजी आश्चर्य में पड़ और बाबा से पूछने लगे की आपकी पूजा से मेरा लड़का ठीक हो गया परन्तु मेरे पूजा करने से इसमें कोई प्रभाव नहीं पड़ा ऐसा क्यों।
तब साधू बाबा ने कहा की तुमने पूजा ही कब की कहने का तात्पर्य यह है की बिना श्रद्धा और विश्वास के पूजा का कोई मतलब नहीं है। पूजा तभी सफल होती है जब मन में श्रद्धा और विश्वास हो।
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5. संत की कहानी – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग – prerak prasang in hindi
किसी गांव में एक संत निवास करते थे, उस गांव में संत को छोड़कर सब लोग कंजूस प्रवृति के थे, कोई किसी को भी कुछ नहीं देता था, संत की कुटिया एक बगीचे में थी। कोई व्यक्ति उसके पास आता तो वह उसे अपने बगीचे से फल तोड़कर खाने को देता और बकरी का दूध भी लोगो को पिने के लिए देता
एक बार संत ने किसी को कहा की बहुत ही जल्द तुम्हे गड़ा हुआ खजाना मिलने वाला है और उसकी बात सच निकली, फिर एक दींन उस संत ने किसी को कहा की तुम्हारी घर की छत आज रात को गिरने वाली है। उस व्यक्ति ने संत की बात मानी और घर से बाहर रहा, संत की बात पुनः सत्य हुई, छत वास्तव में अगले दीं गिर गयी।
अब सभी के अंदर एक धारणा बन गयी थी, की संत की कही बात कभी गलत नहीं होती, उसी गांव में एक अनाथ आश्रम भी था, जिसमे कुछ दिनों से बिलकुल भी दान नहीं आ रहा था, वहा के बच्चे भोजन और वस्त्र के लिए तरस रहे थे एसे स्थिती में वहा के अध्यक्ष संत के पास पहुंचे और विनती की –
हे संत महात्मन, आपने आज तक जो भी कहा है वह सत्य ही हुआ है, मै आपसे एक झूठ बोलने की प्राथना करता हु, आप बीस इतना कह दे की 3 दिन बाद प्रलय होने वाला है।
संत बोले एसा कैसे हो सकता है, झूट तो झूट ही रहेगा , इस पर व्यक्ति बोला मै जानता हु पूज्यवर, परन्तु आपके एक झूट से अनाथलय के अनेक बच्चो को जिंदगी मिल सकती है।
संत बोले मेरे झूट बोलने से बच्चो का क्या सम्बन्ध, परन्तु तुम्हे लगता है की मेरे झूट बोलने से बच्चो को भोजन मिल सकता है, तो मुझे सहर्ष स्वीकार है।
दूसरे दींन संत ने किसी से कहा की तीन दिनों में प्रलय होने वाली है, बात आग की तरह पुरे गांव में फ़ैल गयी, सभी जानते थे की संत की बात हमेसा सही होती है, किसी ने कहा प्रलय के समय जल और थल मिल जाते है, एसा जानकर सभी मंदिर के प्रांगड़ में एकत्र होकर प्राथना करने लगे।
एक दींन पहले ही अनाथआश्रम का अध्यक्ष मंदिर के पुजारी से मिलकर सारी बात बता चूका था, मंदिर के पुजारी ने घोसणा की, की सबको अगर समाप्त ही होना है, तो क्यों न दान-पुण्य कर ही मरे,
यह सुनकर सभी लोग अपने घर की और दौड़े, जिसने जो पाया अन्न, धन, पशू, वस्त्र सभी कुछ दान किये अनाथआश्रम को भी दान दिए, फिर तीसरा दींन आया और चला भी गया,
कोई प्रलय जैसा चीज़ नहीं घटा, परन्तु दान पुण्य से ग्रामवासियो को अद्भुत आनंद मिला तृप्ति मिली, जिसका स्वाद वे पुरे जीवन में नहीं चखे थे,
उस दींन के बाद वहा के लोगो में परिवर्तन आ गया और लोगो ने अपनी कृपणता छोड़ दी, परहित चिंतन में छिपे स्वाद को वे चख चुके थे।
कहानी का तातपर्य यह है की अछे उद्देश्य्य से बोला गया झूट भी कल्याणकारी होता है।
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6. मेरा उपदेश प्रेरक प्रसंग – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक prerak prasang in hindi
एक व्यक्ति किसी महात्मा के पास गया और उस महात्मा से उपदेश देने की प्राथना की।
महात्मा बोले, “मेरा उपदेश यह है की आज के बाद किसी से उपदेश मत मांगना।”
महात्मा की इस बात को सुन कर वह व्यक्ति उलझन में पड गया, सोंच में पड गया की महात्मा ने एसा क्यों कहा होगा।
उसे इस असमंजस में पड़े देख महात्मा बोले – की हे व्यक्ति तुम बताओं की, सच बोलना अच्छा है या बुरा है।
व्यक्ति बोला कि – महात्मन, सच बोलना तो अच्छा बात है।
महात्मा – चोरी करना ठीक है या गलत।
व्यक्ति – चोरी तो पाप है महाराज, यह तो गलत बात है।
महात्मा – समय का सदुपयोग करना चाहिए या दुरपयोग करना चाहिए।
व्यक्ति – महाराज, समय बहुत कीमती है, इसका सदुयोग करना चाहिए अच्छे कामों में लगाना चाहिए।
महात्मा – व्यक्ति बताओं कि दुसरो की इज़्ज़त करनी चाहिए या नहीं करनी चाहिए।
व्यक्ति – दूसरों की इज़्ज़त जरुरी है महराज, तभी तो खुद को इज़्ज़त मिलेगा इसलिए दूसरों को इज़्ज़त अवश्य करनी चाहिए।
अंत में महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा कि “तुम सब कुछ तो जानते हो फ़ीर और कौन सा उपदेश चाहिए तुम्हे। जब तुम्हे अच्छाइयों का ज्ञान है तो इसका पालन करों, इसे जीवन में उतारो, इन पर अम्ल करो तभी तो उपदेश का महत्व होगा।
तभी तो कल्याण होगा, केवल उपदेश सुनने से मात्र कल्याण नहीं होने वाला।
दोस्तों कहानी, लेख का तात्पर्य यह है की केवल उपदेश सुनने से कुछ होने वाला नहीं है, उसे जीवन में उतारना बहुत जरुरी है।
हम सब चीज़े जानते है, सहीं गलत का फर्क पहचानते है फीर भी जीवन भर उलझे रहते है। और तो और इतना समझ होने के बाद भी हमे पल-पल उपदेश का motivation चाहिए होता है, जबकि सारा गुण हमारे अंदर हैं।
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7. संत और कंजूस सेठ – प्रेरक प्रसंग (prerak prasang in hindi)
एक संत थे अमर नाथ जी वे हमेशा प्रभु ईश्वर के गुणगान में लगे रहतें थे और लोगो को भी बुराइयों को त्यागकर ईश्वर भक्ति में लीन होने की उपदेश दिया करतें थे।
लोग उनके उपदेश को सुना करते थे उनसे प्रेरणा लिया करते और इस तरह उनकी भक्तों की संख्या दीन प्रतिदिन बढ़ती गयी।उनकी भक्ति का गुणगान सुनकर एक सेठ, संत अमरनाथ जी से मिलने पहुंचे।
वह सेठ बहुत ही धनी था, उसके लिए पैसा ही सब कुछ था, उस सेठ के लिए पैसे की अलावा सब कुछ बेकार था। पैसे के लिए वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार था जैसे झूट बोलना, लड़ाई झगड़ा करना, छल करना आदि।
सेठ को संत अमरनाथ का सांत स्वभाव को देखकर सेठ को बहुत आश्चर्य हुआ, उसने संत से पूछा की आप की आप इतना सांत और निश्छलता के साथ कैसे रहते हो, आपको कभी पैसे का लालच नहीं होता, आप अपने इस आनंद मय जीवन का राज कृपा कर मुझे भी बताएं।
संत अमरनाथ जी ने कहा की ये सब बात को छोड़िये, मै आपको एक राज की बात बताता हूँ, आपकी एक सप्ताह बाद मृत्यु हो जाएगी। यह बात सुनकर बेचारे सेठ के दिल दिमाग में सन्नाटा छा गया, सेठ भय से ब्याकुल हो गए।
मृत्यु को समीप जानकार उनका सारी वासनाये लालच सब समाप्त हो गयी। उन्हें अपने जीवन के सब झूट, छल, कपट याद आने लगें और उन्हें अपने आप से घृणा होने लगी। वह उखड़े मन से घर की ओर लौटे उनका बर्ताव पूरा बदला-बदला सा था कोई कुछ बात करता तो सेठ भी प्रेमपूर्वक बात कर लेता।
वह धीरे-धीरे ईश्वर भजन में रूचि लेने लगा, उसके मन में था की अब कुछ ही दीन की तो जिंदगी है और इतना सारा धन-दौलत क्या करू सोच कर ईश्वर भजन में खोया रहता था।
वह ईश्वर भक्ति में खोया हुआ अंतिम दिन में अपनी मृत्यु का इन्तजार कर रहा था। तभी संत अमरनाथ जी पहुंचे और सेठ से बोले, क्यों सेठ जी अब पता चला की मै इतना निश्छल कैसे रहता हूँ।
कहानी का तात्पर्य यह है की कोई भी कार्य हो चाहे वह ईश्वर भक्ति या अन्य जरुरी काम हम किसी दूसरे चीजों में उलझे रहतें है और जब अंत नजदीक आता है तब हमे अपनी गलतियों का अहसास होता है।
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8. ईश्वर के दर्शन – ज्ञानवर्धक प्रेरक प्रसंग (motivational incident hindi)
एक राज्य के राजा जिद पकड़ ली की उसे ईश्वर के दर्शन करने हैं, और राजा ने इसके बारे में दरबारियों से उपाय माँगा, की किस प्रकार ईश्वर का दर्शन किया जाए। दरबारियों ने जवाब दिया की महाराज यह कार्य तो मंत्री जी ही कर सकते हैं।
तो फिर क्या था, राजा ने यह कार्य मंत्री जी को सौप दिया, और मंत्री से कहां की हमें ईश्वर के दर्शन कराया जाये, नहीं तो मंत्री जी को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। मंत्री बेचारे घबरा गए, उन्होंने राजा से एक माह की मोहलत मांगी।
फिर दिन पे दिन बीतते गए परन्तु बेचारे मंत्री को कुछ उपाय ही नहीं सूझ रहा था, चिंता में अपना खाना-पीना भी कम कर दिए थे, इस वजह से वे दुबले पतले होने लगे,
मंत्री जी की पत्नी ने अपने पति की इस हालत को देखते हुए उन्हें ये सलाह दिया की आप किसी संत बाबा के पास चले जाएँ, सायद समस्या का कोई हल मिल जाये।
फिर क्या था बेचारे मंत्री जी किसी अच्छे संत की तलाश में निकल गए, तलाश करते-करते कई दिन गुजर गए पर ऐसा कोई नहीं मिला जो मंत्री जी की समस्या का हल कर पाता।
एक दिन वह जंगल के पास से गुजर रहे थे, गर्मी और धुप इतनी थी की वे थके हारे और पूरी तरह चिंता में डूबे, सुस्ताने के लिए एक पेड़ के छाव के निचे बैठ गए और उसकी आँख लग गयी।
कुछ देर बाद किसी ने मंत्री को जगाया, मंत्री ने आँख खोल कर देखा की सामने एक सन्यासी खड़ा हुआ है। सन्यासी को पानी चाहिए था सो मंत्री ने पानी दिया। सन्यासी से मंत्री के चिंतित चेहरे को देखते हुए पूछा की क्या बात है तुम बहुत उदास दिखाई दे रहे हो।
इस पर मंत्री महोदय ने सन्यासी को सारी बात बता दी। मंत्री की बात सुनकर सन्यासी ने कहा की आप चिंता ना करें, मुझे अपने साथ ले चलें, मैं आपके राजा को ईश्वर के दर्शन करा दूंगा।
मंत्री की तो मानों सारी चिंताए समाप्त हो गयी। उसने सन्यासी से पूछना चाहा की आप राजा को ईश्वर के दर्शन किस प्रकार कराओगे, परन्तु सन्यासी ने कहां की वे स्वयं दरबार में चलकर राजा को उत्तर देंगे।
फिर मंत्री सन्यासी को लेकर राजा के दरबार में पंहुचा और राजा से निवेदन किया की महाराज यह महात्मा आपको ईश्वर के दर्शन करा देंगे। राजा ने प्रसन्ता से उस महात्मा का स्वागत किया। फिर महात्मा ने राजा से एक बड़ा सा पात्र मंगवाया जिसमे कच्चा दूध भरा हुआ था।
महात्मा ने कहा की राजन अभी आपको ईश्वर के दर्शन करा देता हूँ। और ऐसा बोलकर उस पात्र के दूध को चम्मच से हिलाने लगे। उस चम्मच को हिलाते-हिलाते कुछ समय बीत गया, परन्तु राजा को कोई ईश्वर का दर्शन नहीं हुआ। तो राजा ने महात्मा से पूछा की आप क्या कर रहें है।
महात्मा बोले दूध से मक्खन निकालने की कोसिस कर रहा हूँ। यह बात सुनकर राजा अचरज में पड़ गए, और महात्मा से बोला की मक्खन ऐसे थोड़ी निकलता है, पहले दूध को गर्म करना पड़ता है, फिर दही जमानी पड़ती है और फिर उसे बिलोकर उसमे से मक्खन निकालना पड़ता है।
राजा की इस बात पर महात्मा बोले की राजन जिस प्रकार दूध से सीधा मक्खन नहीं निकाला जा सकता ठीक उसी प्रकार ईश्वर के सीधे-सीधे दर्शन नहीं हो सकते।
इसके लिए योग, भक्ति, शरीर और मन विचार को सुद्ध करना पड़ता है, और फिर जप तप और साधना से तपाना पड़ता है। फिर प्रेम व भक्ति के माध्यम से ईश्वर का दर्शन संभव है।
दोस्तों यह सिख अनेक चीजों पे लागु होती है, हम अनेक सफल लोगों को देखते है और उनके जैसा बनना चाहते है। परन्तु हम यह नहीं देखते की वो आज सफलता के जिस मुकाम पे है, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कितनी मेहनत की, कितनी असफलता देखी और कितनी रातें जगी, तब जाके यह मुकाम पाया है।
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9. कंजूस आदमी प्रेरक प्रसंग (motivational prerak prasang in hindi)
एक नगर में आनंद नाम का बहुत ही धनवान व्यक्ति रहता था, आनंद जितना धनवान था उतना ही कंजूस भी था, उसने अपने पुत्र मोहन को भी अपने जैसा कंजूश बना रखा था, जीवन भर कंजूस की जिंदगी जीने के बाद जब आनंद की मृत्यु हो गया तो वह मरकर कुत्ते की योनि में जन्म लिया।
एक दीन वह अपने मनुष्य जन्म के पुत्र मोहन के मकान के सामने से गुजरा, तब उसे पूर्व जन्म की स्मृति हुई, उसे लगा की अरे यह तो मेरा ही घर है मेरी ही संपत्ति है मेरा ही पुत्र है, यह सोचते हुए वह कुत्ता बेधड़क उस घर में घुस गया, और रसोई में जाकर भोजन आदि को खाने लगा।
बर्तनो की आवाज सुनकर दूसरे कमरे में बैठे मोहन को संदेह हुआ, वह रसोई घर में पंहुचा और देखा की एक कुत्ता भोजन को खा रहा है, मोहन को उस कुत्ते के दुस्साहस पर हुस्सा आया, उसने लाठी उठाई और उस कुत्ते की खूब पिटाई कर दिया, पिटाई इतनी हुई की कुत्ते का कमर ही टूट गया, अब वह न तो भाग पा रहा था।
तब उसे अपने पूर्व जन्म के आचरण और अपने बेटे के परवरिश पर पछतावा हुवा।
कहानी का तातपर्य ही की मनुष्य मेरा पुत्र मेरा धन करके इतराता रहता है, जब मनुष्य अपने खुद का नहीं हो सकता तो धन और पुत्र वो कहा तक साथ देंगे।
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10. कुम्हार – प्रेरक प्रसंग, हिंदी लघु कहानी (Motivational & Hindi Short prerak prasang)
एक कुम्हार चिलम बनाया करता था, एक बार वह किसी तीर्थ स्थान पे गया, पूजा आराधना श्रद्धापूर्वक किया, फिर थकान मिटाने के लिए पास में ही रखी एक चौकी पे सो गया। कुम्हार हो नींद में एक सपना आया जिसमें एक देवता उससे पूछ रहे थे की ”तुम क्या करते हो’ कुम्हार ने हाँथ जोड़कर कहा की चीलमे बनता हु।
देवता के कहा जिंदगी भर चीलमे ही बनता रहेगा क्या, घड़ा क्यों नहीं बनाता। तुम्हे पता है चीलमे बनाकर तुम कितने लोगों का स्वास्थ्य का नुक्सान कर रहे हो।
तुम्हारा खानदानी काम मटका बनाना है वह बनाता, बर्तन उपयोगी होते है। एसा कहकर देवता अदृश्य हो गया, और कुम्हार की भी नींद खुल गयी
नींद खुलने पर कुम्हार स्वप्न की बात को याद करता रहा और उसने चिलम बनाना छोड़ दिया और घड़े बनाना सुरु कर दिया, और फिर उसे कमाई भी दुगनी होने लगी, कुम्हार ने कुछ घड़े पानी भरकर रस्ते में भी रख दिए ताकि आते-जाते प्यासे लोग पानी पी सके, उसे कुम्हार के अंदर एक तृप्तता सी आ गयी वह उत्साह से जीवन जीने लगा।
कहानी का तात्पर्य यह है की हर किसी को अचे कार्य करने के लिए कुछ प्रेरणा मिलती है, वह हमारे ऊपर है की हम उस बात पर अमल करते है की नहीं।
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11. क्षत्रिय और पडोसी मित्र प्रेरक प्रसंग – हिंदी कहानी (prerak prasang in hindi)
एक बार गुरु नानक देव जी अपने शिष्य बाला-मरदाना के साथ घूमते हुए एक नगर में पहुंचे। उस नगर से कुछ दूर पर एक बाग़ था, मरदाना जी ने आग्रह किया की गुरुदेव यही आसन लगा ले, नानक देव जी तैयार हो गए।
उस बाग़ का माली एक क्षत्रिय था, गुरु जी आये है जानकार वह नानक जी के दर्शन के लिए पंहुचा। और नानक देव जी को प्रणाम करके बैठ गया, कुछ देर तक वह क्षत्रिय बैठा रहा फिर चला गया।
इसी तरह वह रोज गुरु नानक देव जी के दर्शन के लिए आता और कुछ देर तक बैठा रहता फिर चला जाता। इस तरह रोजाना की दिनचर्या को देखकर उस क्षत्रिय के पडोसी ने पूछा कि आप प्रतिदिन कहाँ जाते है।
क्षत्रिय ने जवाब दिया कि एक महात्मा जी आये हुए है, मै रोजाना उन्ही के दर्शन के लिए जाता हूँ।
इस बात को सुनकर पडोसी ने भी साथ चलने की इक्षा जताई, और दोनों साथ में गुरु नानक देव जी के दर्शन के लिए निकल पड़े।
जब वे गुरूजी के दर्शन के लिए निकले तो रास्ते में एक वेश्या का घर पड़ा, जो क्षत्रिय था वह तो गुरूजी नानक देव के पास चला गया, परन्तु उसका पडोसी उस वेश्या के घर चला गया। क्षत्रिय के मन में गुरूजी के दर्शन के अलावा और कोई इक्षा नहीं थी इसलिए वह गुरूजी के पास चला गया।
अब यही प्रक्रिया रोजाना चलने लगा। की पडोसी घर से निकलता और वेश्या के यहां चला जाता और क्षत्रिय सत्संग के लिए निकल जाता। एक दिन पडोसी के मन में भी सत्संग का फल जानने की इक्षा हुई।
और उसने क्षत्रिय से कहा की, आज जो भी पहले लौटेगा, वह दूसरे की प्रतिक्षा करेगा फिर हम आपस में कुछ बात करेंगें।
दूसरे दिन दोनों घर से निकले, क्षत्रिय गुरू नानक देव जी के पास सत्संग में चले गए और पडोसी वेश्या के घर की तरफ गया परन्तु वेश्या घर पे नहीं थी। निराश होकर वह वापस उस जगह पर लौट गया जहां उसे क्षत्रिय का इंतेज़ार करना था।
खाली बैठकर वह जमीन खोदने लगा तो उसे एक घड़ा मिला, जिसमे कुछ सोने की मुहरे थी, वह बहुत खुस हुआ और क्षत्रिय का इंतेज़ार करने लगा।
इधर जब क्षत्रिय सत्संग से वापस आ रहा था, तो रास्ते में उसके पैर में एक काँटा चुभा पूरा पैर खून से लथपथ हो गया। कपडा फाड़ कर उसने अपने पाँव पर बाँध लिया और जैसे-तैसे लंगड़ाते हुए अपने पडोसी के पास पंहुचा, और पड़ोसी को सारी घटना बताई।
इतना सुन पडोसी जोर-जोर से ठहाके मारकर हंसने लगा। और क्षत्रिय से बोला कि तुम रोज सत्संग में जाते हो और तुम्हे आज एक कांटा चुभ गया, मै रोज कुकर्म करता हु फिर भी दखो मुझे सोने के मुहर से भरी घड़ा मिला।
क्षत्रिय भी बड़ा परेशान हुआ, और अगले दिन दोनों गुरूजी के पास इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए पहुंचे। और सारी बातें गुरूजी को बताई गुरूजी शांत थे। पर क्षत्रिय के द्धारा प्राथना किये जाने पर गुरूजी ने पडोसी से कहां कि
“पूर्व जन्म में तुमने एक मोहर दान दिए थे, सो तुम्हे सोने के मोहरों से भरा घड़ा मिला” परन्तु तुम्हारे कुकर्मो के बदौलत वह कोयला बन चूका है। और मेरा भक्त यह क्षत्रिय के भाग्य में शूली पर चढ़ना लिखा था, पर सतसंग के प्रभाव से शूली शूल में बदल गया।
कहानी का तात्पर्य यह है कि अगर अच्छे कर्म करते है, तो इससे हमे कभी हानि नहीं होती, सत्संग से कभी भी हानि नहीं होती।
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12. योग्य गुरु की तलाश : प्रेरक प्रसंग – हिंदी कहानी (prerak prasang in hindi)
किसी समय में एक राजा हुआ करता था। एक दिन उस राजा के दिमाग में आया की एक योग्य गुरु की तलाश किया जाए। राजा ने राज्य में घोषणा करवा दिया की, जिसका भी आश्रम सबसे बड़ा होगा, राजा उसे अपना गुरु स्वीकार कर लेगा।
फ़ीर क्या था घोषणा सभी तरफ आग की तरह फ़ैल गयी और देखते ही देखते अनेक सन्देश आने लगे की मेरा आश्रम बड़ा है मेरा आश्रम बड़ा है। और अगले दिन सभी अपने-अपने आश्रम का नक्शा लेकर राजमहल राजा के पास पहुंच गए।
सभी ने राजा के सामने अपनी प्रस्ताव रखी, राजा भी एक-एक करके सबकी बात सुनता गया। फीर अंत में एक तेजस्वी साधु बाबा की बारी आयी।
राजा ने उस तेजस्वी बाबा से पूछा की आपने तो बताया ही नहीं की आपका आश्रम कितना बड़ा है।
सन्यासी बाबा ने कहा- राजन, मै यहाँ पर कुछ नहीं बताऊंगा। आप मेरे साथ स्वयं जंगल चल सकते हैं, वहां मै आपको मेरा आश्रम दिखा दूंगा।
राजा साधु की बात पर राजी हो गया, और जंगल जाने को तैयार हो गया। फ़ीर राजा और साधु जंगल पहुचें, जंगल पहुंच कर साधु एक वृक्ष के नीचे आसन बिछा कर बैठ गया। राजा ने सवाल किया की सन्यासी महाराज कहाँ है आपका आश्रम।
साधु बाबा ने कहा – हे राजन, ऊपर आकाश, नीचे धरती और बीच में ये सारा संसार, यही है मेरा आश्रम। अगर आपके पास कोई मापने का वस्तु या यंत्र हो तो माप लो की मेरा आश्रम कितना बड़ा है।
राजा ने इस बात को सुनकर तुरंत उस तपस्वी बाबा को अपना गुरु मान लिया।
कहानी का तात्पर्य यह है कि चाहे सीमा धर्म की हो या आश्रम की हो। जो सीमा में बंध जाता है, उसकी सोंच और दृश्टिकोण भी एक सीमा तक सिमित हो जाती है।
हमें ये जानना बहुत जरुरी है की हमारी ज्ञान और बुद्धि की सीमा सिमित नहीं होनी चाहिए। इसमें असीमितता की बात होनी चाहिए, हमेसा अपनी सोंच को उच्च और साफ सुथरा रखें।
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13. लहरों से डरना नहीं : प्रेरक प्रसंग (prerak prasang in hindi)
एक समय की बात है, एक महात्मा नदी किनारे खड़े होकर प्रकृति को निहार रहे थे। कल-कल नदियों का बहना, ठण्डी-ठण्डी हवाएं और पेंड के पत्तों का झूमना, बहुत ही आनंदमय वातावरण था।
दूर कहीं पर्वत पर काले बादल छाए हुए थे, और मन को तृप्त कर देने वाला शांतमय वातावरण था।
तभी उन महात्मा के पास एक शिष्य आया, उस शिष्य के मन में कुछ सवाल था। वह जिज्ञाषा से भरा हुआ था, अपने जिज्ञासा को दूर करने के लिए शिष्य ने महात्मा से पूछा – गुरूजी, आप जिस प्रकार इस भूमि में चल सकतें है, उसी प्रकार इस पानी पर भी चल सकते हैं।
परन्तु जब हम पानी पर चलने जाते है, तब डूबने लगते है, ऐसा क्यों गुरूजी।
गुरूजी शिष्य से बोले की – जिसके हृदय में श्रद्धा, निष्ठा है, और अपने गुरु या पूज्य के प्रति विश्वास है, वह एक नाव के सामान इस पानी पर चल सकता है, वह डूबेगा नहीं।
गुरूजी की इन बातों को सुनकर शिष्य बोला – गुरूजी, मेने जबसे आपको देखा है, तबसे मेरे दिल में आपके लिए श्रद्धा है। मुझे भी पूरा विश्वास है, और आप ही की तरह मै भी आस्थापूर्ण हूँ।
तब गुरूजी बोले – मेरे साथ आओ शिष्य और हम दोनों मिलकर इस पानी पर चलते हैं। गुरूजी पानी पर चलने लगें, पीछे-पीछे शिष्य भी पानी पर चलने लगा।
कुछ दूर चले ही थे की अचानक एक लहर उठी, गुरूजी उस लहर पर चलने लगे, परन्तु शिष्य उस लहर को देख घबरा गया और छटपटाते हुए पानी में डूबने लगा, उसने चिल्लाया गुरूजी-गुरूजी बचाओ।
गुरूजी ने उसे बचाया फिर उससे पूछा की शिष्य क्या हुआ – शिष्य भय से बोला, गुरूजी जब मैने लहरों को देखा तो ऐसा लगा मानो वह मुझे निगल जायेगा और मै पूरी तरह डर गया।
गुरूजी बोले – अफसोस मेरे बच्चे, तुमने लहरों को तो देखा, मगर लहरों के उस स्वामी को नहीं देखा जो हमेसा मदद के लिए तैयार रहता है।
दोस्तों कहानी का तात्पर्य बहुत ही simple है, की हमे किसी चीज़ पर विश्वास करनी है तो पूरी दिल से करनी चाहिए। अगर कोई काम सहीं है हमारा दिल कहता है, यह सहीं है तो उस कार्य को करना ही चाहिए चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न आये। देर सहीं पर मेहनत एक दिन जरूर रंग लाएगी।
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14. गुरु शिष्य और तितली : प्रेरक प्रसंग (prerak prasang in hindi)
एक समय एक गुरु और शिष्य बगीचे में बैठे हुए अपने ध्यान चिंतन में मग्न थे, ध्यान चिंतन करते-करते शिष्य देखता है, की एक पौधे के नीचे पत्तों व घांस में एक अण्डा पड़ा हुआ है। और उस उस अंडे के अंदर जो भी जीव, प्राणी है वह अंडे को तोड़ कर बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है।
और यह प्रयास लगातार चलता रहा, सुबह से दोपहर हो गया फीर दोपहर से शाम हो गया, लेकिन वह प्राणी अंडे से बाहार नहीं निकल पाया था। हालांकि उसके लगातार प्रयास से अण्डा जगह-जगह से टूट गया था और इल्ली (तितली) का थोड़ा सा मुँह बाहर निकल गया।
इसी तरह यह कोशिश लगातार दिन रात चलती रही और कई दिन बीत गए, परन्तु इल्ली अभी भी अंडे से बाहर नहीं निकल पायी थी।
शिष्य उसे ध्यान से देखता रहता था, शिष्य को इल्ली पर बड़ी दया आ रही थी, की वह प्राणी दिन-रात मेहनत कर रहा है और अण्डा से बाहर आना चाह रहा है परन्तु अण्डा तो थोड़ा-थोड़ा करके ही टूट रहा है।
शिष्य को लगा की इस इल्ली के लिए कुछ करना चाहिए। परन्तु गुरजी शिष्य को बोलते की तुम इधर-उधर अपना ध्यान मत भटकाओ और केवल ध्यान में अपना मन लगाओ।
अंत में शिष्य से रहा नहीं गया और उसने अण्डे के खोल को तोड़कर इल्ली बाहर निकाल ली, शिष्य इल्ली को अपने हाँथ में लेकर उसे देखने, निहारने लगा।
वह बहुत ही प्रसन्न हुआ की मैने इस इल्ली पर दया दिखाते हुए इसकी जान बचा ली, परन्तु वह इल्ली मुश्किल से 2, 3 घंटे तक जीवित रही फिर मर गयी। शिष्य को बहुत दुःख हुआ वह समझ नहीं पाया की आखिर ऐसा क्यों हुआ।
उसने गुरूजी से पूछा की गुरूजी ऐसा क्यों हो गया।
गुरूजी बोले – तुमने इस अण्डे को जीवन देने के बजाय इसकी जीवन ले ली।
तुमने उस इल्ली की पीड़ा देखी जबकि वास्तव में वह पीड़ा थी ही नहीं, इल्ली बार-बार अपने पंख से अण्डे पर प्रहार किये जा रही थी। जिससे उसके पंखो पर मजबूती आ रही थी और कुछ दिन बाद उसके पैर मजबूत हो भी जाते, वह खुद से उस अण्डे को तोड़ पाती, फीर वह स्वतंत्र होकर घूमती फिरती फूलों का आनंद लेती।
दोस्तों इस छोटी सी कहानी का सार यह है की हम अपने बच्चों को या किसी अपने को या फिर खुद को तकलीफ देना ही नहीं चाहते हम चाहते है की उन्हें बिना तकलीफ किये ही सारा सुख मिले।
प्रयाश करना, हार जाना, फिर प्रयास करना, और प्रयाश करते रहना। हम ये नहीं चाहते, हम यह चाहते है की हमे बिना प्रयास किये सफलता मिले, हमे जीवन में कोई कष्ट उठाना ना पड़े।
दुःख तकलीफ होने पर रोते तो सभी हैं, पर बहुत कम ही ऐसे लोग होते हैं जो संघर्ष करते हैं।
अधिकतर लोग अपने जीवन से समझौता किये हुए होते है और डर-डर कर अपना जीवन गुजार देते हैं। याद रखिये परिस्थितियों को बदलने का नाम ही संघर्ष है।
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15. योग्य शिष्य का चुनाव लकड़ी के तिनके द्वारा – प्रेरक प्रसंग (prerak prasang in hindi)
एक संत महात्मा थे, गांव से कुछ ही दूर जंगल के पास उनकी कुटिया थी जहां वे निवास करते थे और भक्ति भजन में लगे रहते थे। गांव के लोग भी महात्मा के दर्शन के लिए रोजाना जाया करते थे और उनसे ज्ञान की बातें सुना करते थे, महात्मा रोज शाम को गांव वालों को प्रवचन में अच्छी-अच्छी बाते बताया करते थें।
उनके ज्ञानवर्धक प्रवचन का असर इस कदर फैला हुआ था कि दो व्यक्ति उनसे बहुत अधिक प्रभावित थे। उन दो व्यक्तियों का मन था की महात्मन उन्हें अपना शिष्य (चेला) बना लें और अपने साथ अपने कुटिया में रखकर सेवा का मौका दें एक दिन जब महात्मा गांव वालों को प्रवचन देकर उठे तब उन दो व्यक्तियों ने अपनी इक्षा महात्मा के सामने रखी।
दोनों व्यक्तियों ने महात्मा से बोला – हे गुरुदेव, हमें अपना शिष्य बना लीजिये।
महात्मा ने दोनों को देखते हुए बोला कि तुम दोनों मेरा शिष्य बनना चाहते हो परन्तु शिष्य तो कोई एक बन सकता है।
दोनों व्यक्ति महात्मा से निवेदन करने लगे कि हमें अपना शिष्य बना लीजिये। एक बोलता हमे शिष्य बनाइये, दूसरा बोलता हमे बनाइये।
तब गुरूजी (महात्मा) ने कुछ फैसला लिया और फिर दोनों से बोले कि देखों तुम दोनों को मेरा शिष्य बनने के लिए एक परीक्षा देना होगा। और जो इस परीक्षा में पास हो जायेगा वह मेरे शिष्य बनने के योग्य होगा।
दोनों व्यक्ति मान गए और बोले, ठीक है गुरूजी बताइये हमें कौन सी परीक्षा देनी है।
गुरूजी ने उन दोनों को एक तिनका (बांस की पतली सी लकड़ी) दिया और बोले की कल सुबह जब प्रवचन सुनने के लिए आओगे तब इस लकड़ी के टुकड़े को बीच से तोड़ के लाना। और याद रहे कि इस लकड़ी को ऐसे जगह तोड़ना जहाँ तुम्हे कोई देख ना रहा हो।
और फिर दोनों व्यक्ति गुरूजी से आशीर्वाद लेकर अपने-अपने घर चले गएँ।
दूसरे दिन दोनों गुरूजी के पास लौटकर आये। गुरूजी ने उनसे सवाल किया कि कल जो मैने तुम्हे आज्ञा दी थी उसे तुम दोनों ने पूरा किया। पहला व्यक्ति बोला हां गुरूजी यह रही आपकी लकड़ी का तिनका जिसे मैने घर से कुछ दुरी पर जाकर शांत वातावरण में जहाँ कोई नहीं था वहा दो टुकड़ो में तोड़ लिया है।
फिर गुरूजी ने दूसरे व्यक्ति से बोला कि तुम भी दिखाओ लड़की का वह टुकड़ा जिसे तुमने अकेले में तोडा होगा।
वह व्यक्ति बोला मुझे क्षमा कीजिये गुरुदेव परन्तु मै उस लकड़ी को तिनके को दो भागों में नहीं तोड़ पाया।
गुरूजी बोले ऐसा क्यों – व्यक्ति ने जवाब दिया गुरूजी मैने उस लकड़ी के तिनके को तोड़ने के लिए प्रयास किया परन्तु मुझे ऐसा कोई एकांत जगह मिला ही नहीं जहाँ मुझे कोई देख ना रहा हो इस वजह से मै उसे तोड़ नहीं पाया।
क्योंकि मै जहाँ-जहाँ गया वहा मै अकेला नहीं था जंगल में पेड़-पौधे मेरे साथ थे जमीन और आकाश मुझे हमेसा देख रहे थे ऐसा कोई जगह ही नहीं मिला जहाँ मै अकेला होता।
गुरूजी उस व्यक्ति की बात से प्रशन्न हुए और उसे अपना शिष्य बना लिया।
दोस्तों जो चीज हमें सरल लगती है या कोई गुरु ऐसा बात कहे जिसका अर्थ बड़ा सरल सा लगे तो जरुरी नहीं है की उसका जवाब या हल भी सरल ही हो। जीवन में कई बार ऐसे चीज़ें होती है जो दिखने में तो सरल लगती है परन्तु उसका अर्थ या उत्तर उतना सरल नहीं होता।
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16. अनमोल कमल का फूल : प्रेरक प्रसंग (flower prerak prasang in hindi)
उस साल सर्दी मानों अपने चरम पर थी कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी, हालात ऐसे थे की ओस, ओले वे वजह से पेड़ पौधों का बुरा हाल था। दूर-दूर तक हरियाली का एक तिनका भी नजर नहीं आ रहा था, अब ऐसे स्थति में मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए फूल कहाँ से मिल पाते। इससे सभी परेशान थे की आखिर पुष्प के बिना कैसे अपने गुरु एवं अपने ईश्वर की पूजा-अर्चना की जाय।
परन्तु सुदास माली की किश्मत इतनी अच्छी निकली की जाने कैसे उसके सरोवर में कमल फूल खिल उठा। सुदास माली के खुसी का ठिकाना ना रहा क्योंकि अब उसे मनचाहा मूल्य जो मिलने वाला था।
सुबह-सवेरे उठकर सुदास माली ने उस कमल के फूल को तोड़ लिया और राजमहल की ओर आगे बढ़ा, फिर राजमहल के दरवाजे पर पहुंच कर दरबान से कहा कि राजा को संदेश दे की सुदास माली आया है और अपने साथ ऐसा कमल पुष्प लाया है जो बेजोड़ और बहुमूल्य है।
माली वही द्वार के पास खड़ा था, की वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति की नजर उस कमल के पुष्प पर पड़ी, उस व्यक्ति को कमल का पुष्प बहुत भाया, व्यक्ति ने माली से पूछा की – क्या यह कमल फूल बिक्री के लिए है।
माली ने जवाब दिया की – यह कमल का फूल मै महाराज को अर्पित करने के लिए लाया हूँ।
उस आगंतुक व्यक्ति ने कहा – मै तो इस पुष्प को महाराजाधिराज को अर्पित करना चाहता हूँ।
माली बोला – मै आपका तात्पर्य नहीं समझा।
व्यक्ति बोला – दरअसल बात यह है की भगवान बुद्ध आज इस नगर में पधारे हैं, आप तो बस अपने पुष्प की कीमत बताइये।
माली बोला की मै, महाराज के दरबार में यह पुष्प लेकर इसलिए आया हूँ, की मुझे सोने की एक मुद्रा मिल सके।
व्यक्ति खुसी से बोला की मुझे यह मूल्य स्वीकार है।
उसी समय अचानक महाराज प्रसेनजित नंगें पाँव अपने दरबार से निकले, वे भी भगवान गौतम बुद्ध के दर्शन के लिए जा रहे थे।
सुदास माली के हांथो में अनोखा कमलपुष्प देख कर राजन बड़े आनंदित हो गएँ और वहीँ रुक कर उन्होंने माली से पूछा की – माली इस पुष्प की क्या मूल्य लगाए हो।
माली बोला – हे राजन पुष्प तो मै इन्हे बेंच चूका हूँ।
राजा बोला – किस मूल्य पर।
माली – एक सोने की मुद्रा के बदले।
राजा बोला – मै तुम्हे दस सोने की मुद्रा दूंगा।
तब वह आगंतुक व्यक्ति बोला, मै बीस सोने की मुहर दूंगा।
राजन भौचक्के रह गए, उन्हें आश्चर्य में देख आगंतुक व्यक्ति बोला – आज हम दोनों ही भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए जा रहे हैं। इस समय हम दोनों ही उनके भक्त है, यहाँ ना कोई राजा है और ना कोई प्रजा, तो कृपा करके मेरे इस धृष्टता को क्षमा करें।
महाराज शांत मन से मुस्कुराये और और बोले, सच कहते हो भक्तराज, परन्तु मै इस पुष्प के चालीस मुद्राएं दूंगा।
इतने में आगंतुक बोला – मै अस्सी दूंगा।
कमलपुष्प की इतनी बढ़ती कीमत को देखकर माली चकित हो गया, उसकी समझ में नहीं आ रहा था की यह पुष्प अचानक इतना महंगा कैसे हो गया।
फिर उसके मस्तिष्क में कुछ ख्याल आया उसने राजा और आगंतुक दोनों से कहा की, आप लोग मुझे क्षमा करें परन्तु मै यह पुष्प किसी भी कीमत पर नहीं बेचूंगा।
ऐसा बोल कर माली वहां से निकल गया, फिर नगर से कुछ दूर बाहर निकल कर सोचने लगा की जिस भगवान बुद्ध के लिए उनके भक्त साधारण सी कमल पुष्प के लिए इतनी महगी कीमत देने को तैयार है क्यों ना उन्ही के पास जाकर कमल पुष्प को बेचा जाये और मुहमाँगा मूल्य पाया जाये।
फिर क्या था माली भगवान बुद्ध के तलाश में निकल पड़े, भगवान बुद्ध की खोज करते-करते यह माली उनके पास पहुंच गएँ, जहाँ वे एक एक वटवृक्ष के नीचे आसन लगाकर बैठे थे। क्या अलौकिक सौन्दर्य था, कितना सूंदर दृश्य था, उनके नेत्रों से जैसे करुणा बह रही थी।
सुदास माली कुछ समय के लिए मुग्ध हो गए और एकटक उस तपश्वी (भगवान बुद्ध) की ओर देखने लगें। फिर थोड़ी देर में ध्यान में आएं और आगे बढ़ कर उस कमल के पुष्प को उस तपश्वी के चरणों में अर्पित कर दिया।
भगवान बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले – क्या चाहते हो वत्स।
सुदास माली बोला – अब मेरी कोई इक्षा नहीं है भगवन, भावुकता से माली बोला आप मुझे अपना लें प्रभु, भगवन ने मुश्कुराते हुए माली की तरह देखा जैसे स्वीकृति दे दिया हो। माली को अब कमलपुष्प का नहीं बल्कि अपने जीवन का भी सार्थक मूल्य मिल गया था।
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