हाथी, सियार और शंकर जी का मजेदार कहानी – दादी माँ की हिंदी कहानी | kahani in hindi

You are currently viewing हाथी, सियार और शंकर जी का मजेदार कहानी – दादी माँ की हिंदी कहानी | kahani in hindi
kahani in hindi

शंकर जी को ठगने वाले सियार – kahani in hindi

kahani in hindi : एक समय की बात है एक हाथी और सियार बहुत अच्छे दोस्त थे, दोनों साथ में ही घुमा फिरा करते व अपना सारा वक्त एक दूसरे के साथ ही बिताते थे इस तरह से उन दोनों का याराना था। 

एक दिन हाथी और सियार दोनों घूमते-घूमते एक सुनसान वीरान सी जगह पर पहुंच गएँ, घंटों घूमने के बाद अचानक सियार को प्यास लगी, सियार ने अपने मित्र हांथी को बताया की उसे जोरों से प्यास लगी है। फिर दोनों पानी की तलाश में आस-पास नजर दौड़ने लगे परन्तु उन्हें आस-पास पानी का कोई जुगाड़ नहीं दिखा। 

अपने मित्र सियार को प्यास से तड़पते देख हाथी को एक तरीका सुझा उसने सियार से बोला कि मित्र तुम मेरे पीठ पर चढ़ जाओ और देखों की कहीं आस पड़ोस में बगुले का झुण्ड तो नहीं है, क्योकि जहाँ बगुलों का झुण्ड होगा वहां पानी अवश्य होगा।

सियार ने ठीक वैसा ही किया वह हाथी के पीठ पर चढ़ गया और आस-पास नजर दौड़कर देखने लगा। परन्तु सियार को एक भी बगुलों का झुण्ड नहीं दिखा, उसने यह बात अपने मित्र हांथी को बताई कि, हे मित्र हाथी – आस पास तो कोई भी बगुला नहीं दिखाई दे रहा है, लगता है मै प्यासा ही मर जाऊंगा। 

अपने मित्र सियार को इस तरह चिंतित देख कर हाथी ने सियार कहा कि मित्र मेरे पेट में बहुत सारा पानी है, अगर तुम चाहो तो मै अपना मुँह खुला करके तुम्हे अपने पेट के अंदर जाने दूंगा और तुम पानी पीकर अपना प्यास बुझा लेना, परन्तु एक शर्त है कि तुम मेरे पेट में ऊपर की तरफ मत देखना। 

अब बेचारा सियार मरता क्या ना करता उसने हाथी की बात मान ली  

हाथी ने अपना मुँह खोला और सियार उसके मुँह से अंदर घुस गया, अंदर घुस कर सियार ने हाथी के पेट में भरे पानी को पीकर अपनी प्यास बुझाई। 

प्यास बुझ जाने के बाद वह थोड़ी देर वहीँ, हाथी के पेट में बैठकर आराम करता रहा, फिर अचानक उसे याद आया कि हाथी ने कहा था कि मेरे पेट के ऊपर मत देखना। 

सियार सोंच में पड़ गया कि आखिर उसके मित्र हाथी ने उसे ऊपर देखने से मना क्यों किया है। आखिर कार उसने तय किया की देखा जाये ऐसा क्या है जो मित्र ने मुझे ऊपर देखने से मना किया है। सियार ने ऊपर देखा, देखकर वह अचंभित हो गया कि ऊपर तो कितना बड़ा कलेजा (ह्रदय) है। 

सियार सोचने लगा कि यह इतना बड़ा कलेजा कितना स्वादिस्ट होगा, इधर हाथी ने सियार को आवाज लगाई की मित्र अगर पानी पी लिए होंगे तो बाहर आ जाओ। 

परन्तु सियार तो अपना इरादा बदल चूका था वह बड़ा खुश था कि उसे खाने के लिए स्वादिष्ट कलेजा और पिने के लिए पानी दोनों हाथी के पेट के अंदर मिल चूका था। 

अब सियार ने धीरे-धीरे हाथी के कलेजे को खाना शुरू कर दिया और जब प्यास लगती तो हाथी के पेट में पानी भरा हुआ था जिसे पीकर वह अपना प्यास बुझा लेता। इस तरह हाथी बेचारा कलेजे के खाएं जाने के वजह से मारा गया। 

कलेजा खाने के स्वार्थ में सियार अब हाथी के पेट में फस चूका था क्योंकि हाथी तो अब मर चूका था और मरा हुआ हाथी अपना मुँह कहाँ से खोलता और सियार उससे बाहर कैसे निकलता। 

जब खाना पानी खत्न हुआ तब सियार ने हाथी को आवाज लगाई कि मित्र अपना मुँह खोलो मुझे बाहर निकलना है परन्तु मरा हुआ हाथी कहाँ से सुनता अब तो सियार बुरी तरह फस चूका था। 

दिन बीतते गए और हाथी का शरीर सिकुड़ता गया अन्दर फसा सियार सोचने लगा कि अब तो खाना भी ख़त्म हो गया है और पानी भी, लगता है मेरी  मौत यही होने वाली है। 

एक दिन शंकर जी उसी रास्ते से भ्रमण करते हुए जा रहे थे, अचानक उन्हें लगा की किसी ने आवाज दी हैं, शंकर जी ने जब इधर-उधर नजर घुमाई तब पता चला की आवाज मरे हुए हाथी के पास से आ रही है। जैसे ही शंकर जी उस हाथी के करीब पहुंचे, क़दमों की आहट से सियार को पता चल गया की कोई आया है। 

उसने आवाज लगाई कि – कौन हैं ?

शंकर जी बोले – मै महादेव हूँ, तुम कौन हो ?

सियार बोला – मै सहादेव हूँ, मुझे विश्वास नहीं हैं कि तुम महादेव हो, अगर महादेव हो तो बारिस करवा के तो बताओ। 

शंकर जी उस सियार की बातों में आ गएँ और जम कर बारिश करा दी। 

बारिस की वजह से हाथी का शरीर फूल गया और उसका मुँह भी खुल गया, अब सियार हाथी के पेट से फटाफट निकला और और भागते हुए शंकर जी से बोला – भला ठगा, भला ठगा। 

शंकर जी को बहुत गुस्सा आया उन्होंने बोला, रुको सियार कहीं के मै तुम्हे मज़ा चखाकर ही रहूँगा और सियार को सबक सीखाने के लिए तरकीब बनाने लगे। 

फिर शंकर जी एक तालाब में जाकर छिप गए जहाँ वह सियार पानी पिने के लिए जाता था। जब सियार पानी पीने के लिए तालाब में उतरा तब शंकर जी ने कसकर सियार के पैर को पकड़ लिया।

सियार समझ गया कि शंकर जी ने उसके पैर को पकड़ लिया है वह हँसते हुए बोला – देखों तो सहीं शंकर जी ने मेरे पैर को छोड़कर बरगद पेड़ की टहनी को पकड़ा है। शंकर जी ने जब यह बात सुनी तब उन्होंने सियार के पैर को छोड़ दिया और इधर-उधर सियार की पैर ढूंढने लगे। 

सियार फिर वहां से भाग निकला और भागते-भागते शंकर जी से बोला – भला ठगा, भला ठगा 

अब शंकर जी गुस्से से आग बबूला हो गए उन्होंने इस बार सियार को मजा चखाने के लिए एक बेहतर तरकीब सोंची, सियार हमेसा गस्ती पेड़ के पास जाता था तो शंकर जी ने गस्ती पेड़ के पास मैन की एक बूढी औरत बना दी व उस बूढी औरत के दोनों हाथों पर लड्डू पकड़ा दिए। 

अब कुछ देर में जब सियार उस पेंड के पास पंहुचा तो उसने देखा की एक बूढी औरत अपने दोनों हाथों में लड्डू पकड़ी हैं सियार ने सोंचा की उस औरत से एक लड्डू को मांग लूँ।

उसने ऐसा ही किया उस बूढी औरत से एक लड्डू माँगा परन्तु जवाब में उस बूढी ने कुछ भी नहीं बोला। अब सियार को गुस्सा आ गया उसने बोला हे बूढी औरत मुझे लड्डू देती हैं की तुझे एक रपट लगाऊं। 

पर मैन से बनी औरत कहाँ बोलने वाली, अंत में सियार गुस्से से तिलमिला गया और बुढ़िया को एक रपट लगा दी। अब होना क्या था सियार का हाथ चिकप गया, उसने फिर बोला अरे बुढ़िया मेरा हाथ छोड़ वरना तुझे दूसरे हाथ से तमाचा लगाऊंगा। 

सियार ने वैसा ही किया उसने दूसरा हाथ बुढ़िया पर उठाई और अब उसका दोनों हाथ चिपक चूका था। साथ ही पैर से भी वह यही प्रयाश करने लगा और उसके पैर भी चिपक गएँ। 

अब सियार बुरी तरह से फस चूका था इतने में शंकर जी आये और उस सियार के हाथ पैर को रस्सी से अच्छी तरह कसकर बाँध दिए। इतने में उस बगीचे का मालिक भी आ गया। शंकर जी ने उस बगीचे के मालिक से कहाँ की तुम रोज सुबह शाम आते-जाते इसे 5 कुटेला मारना।

और ऐसा कहकर शंकर जी चले गएँ, अब उस बगीचे की मालिक ने उस सियार को जमकर 5 कुटेला लगाया, यह प्रक्रिया अब रोज चलने लगा, बगीचे का मालिक आता और उसे 5 कुटेला मार कर चला जाता।

बेचारा सियार इस तरह सुबह शाम के मार से पूरा सूज कर मोटा चूका था। एक दिन वहां एक और सियार आया, उसकी नजर बंधे हुए सियार पर पढ़ी उसने बंधे हुए सियार से पूछा कि भाई क्या बात है तुम इतने मोटे हो चुके हो आखिर खाते क्या हो। 

बंधा हुआ सियार बोला क्यों मोटा नहीं होऊंगा भाई सुबह शाम 5-5 खा रहा हूँ तो। उस दूसरे सियार के मन में भी खाने का लालच फूटने लगा उसने बोला भाई क्या मुझे भी कुछ दिन खाने को मिल सकता हैं क्या मै भी थोड़ा बहुत मोटा हो जाता। 

उस बंधे हुए सियार ने बोला क्यों नहीं आखिर मेरे ही बिरादरी के हो, मै तुम्हारी ख्वाहिस जरूर पूरा करूँगा। पहले तुम मुझे खोलो, दूसरे सियार ने फटा-फट बंधे हुए सियार की रस्सी खोल दी। 

सियार जैसे ही आजाद हुआ उसने दूसरे सियार को कसकर रस्सी से बांध दिया और वहां से इस तरह गायब हुआ कि दूर-दूर तक नजर नहीं आया। 

अब जब शाम को बगीचे का मालिक आया उसने सियार को 5 कुटेला लगाना शुरू किया जैसे ही सियार को कुटेला लगना शुरू हुआ उसने चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया।

और मालिक से रहम की भीख मांगी उसने बगीचे की मालिक को सारा सच्चाई बताया कि किस तरह उस चालबाज सियार ने उसे फसाया। 

बगीचे का मालिक सारी बात समझ गया और उसने सियार को एक कुटेला और जमा दिया और रस्सी को खोलते हुए बोला चल निकल यहाँ से और दोबारा मत आना। 

जैसे ही रस्सी खुला सियार वहां से पल्ला हो गया और दूर-दूर तक कहीं नहीं रुका। 

और दादी का किस्सा यही पे समाप्त हो गया।  

नोट 

यह केवल बच्चोँ को मनोरंजन के लिए सुनाई जाने वाली हिंदी कहानी (kahani in hindi) का समूह हैं कृपया करके इसमें लॉजिक ढूंढने का प्रयाश ना करें – धन्यवाद। 

आखिर में 

दोस्तों अगर यह हिंदी कहानी – kahani in hindi आपको पसंद आयी हो तो इसे अपने friends के साथ अवश्य shear करें और रोजाना पोस्ट का update पाने के लिए टेलीग्राम को जरूर join करें

comment box में अपनी राय व प्रतिक्रिया जरूर दें धन्यवाद।

अन्य पढ़ें

Leave a Reply