इस लेख में हमने 5 बेहतरीन ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग (informative inspirational quotes in hindi) को पब्लिश किया है, जो आपके life में थोड़े बहुत बदलाव लाने में सहायक होगा और आपके अंदर सकारात्मक भाव पैदा करेगा।
अपने मन और आत्मा में प्रेरक ऊर्जा भरने तथा अपने जीवन को सहीं दिशा देने के लिए यह लेख पढ़ें –
आम का मोह – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग
एक बार..गुरू ने अपने शिष्य को समझाते हुए, आम के पेंड की कहानी सुनाई – एक आम का वृक्ष था। जिसमे ढेर सारे आम पके हुए थे, एक दिन उस पेंड का मालिक आया और पेंड पर चढ़कर सारे आम तोड़ने लगा।
परन्तु एक आम का फल वृक्ष से दूर होने का मोह छोड़ नहीं पाया और वही कहीं पत्तों की आड़ में छिप गया। उस पेंड के मालिक को जब लगा कि उसने सारे आम तोड़ लिया है तब वह नीचे उतर गया और वहां से चला गया, यह सब वह छिपा हुआ आम देख रहा था।
फिर दूसरे दिन जब उस आम ने देखा के उसके साथ के सारे आम तो जा चुके हैं केवल उसी का मोह उसे पेंड से अलग होने नहीं दे रहा है। उसे अपने मित्र आमों की याद सताने लगी।
वह बार-बार सोचता कि नीचे कूद जाऊ और अपने दोस्तों से जा मिलु परन्तु उसे पेंड का मोह अपनी ओर खींचने लगता, आम रोजाना इसी सोंच में डूबा रहता।
चिंता का यह कीड़ा उसे लगातार काटे जा रहा था जल्द ही वह सूखने लगा और एक दिन वह गुठली और छिलका के रूप में ही बस रह गया, उसके अंदर का सारा रस समाप्त हो गया था।
अब अपना आकर्षण खो देने के कारण उसके तरफ कोई देखता भी नहीं था वह बहुत पछताने लगा की संसार का कोई सेवा नहीं कर सका, व वह लोगों का काम भी नहीं आ सका, आखिरकार एक दिन तेज हवा का झोंका आया और वह डाली टूटकर नीचे गिर गया
दोस्तों “आम का मोह” कहानी का तात्पर्य या प्रेरणा, सन्देश यह है कि जरुरत से ज्यादा मोह आपको व्यर्थ बना सकता है, वो कहते हैं ना कि कही पहुंचे के लिए कही से निकलना बहुत जरुरी होता है।
ठीक उसी तरह सफल होने के लिए मोह का त्याग करना आवश्यक होता है चाहे वह मोह आपके घर परिवार दोस्त यार आदि का हो चाहे आपके कम्फर्ट जोन का – आखिर में : रोज एक कदम सफलता की ओर।
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समय की कीमत प्रेरक प्रसंग – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक हिंदी कहानी
एक समय की बात है सुबह-सुबह एक गरीब व्यक्ति राजा के दरबार में पहुँचता है। और राजा को अपनी गरीबी की करुण गाथा बताने लगता है। राजा को उस व्यक्ति की दरिद्रा की कहानी सुनकर बहुत ही ज्यादा दुःख होता है और उस व्यक्ति के लिए दया आ जाती है।
करुणा के भाव से राजा उस दरिद्र से कहता है कि तुम आज सूर्यास्त होने से पहले खजाने में से जितना धन ले जा सको ले जाओ। वह दरिद्र व्यक्ति राजा की इस बात को सुनकर बहुत ही ज्यादा खुश हो जाता है,
वह सोचने लगता है की अब दुःख के दिन गए सूर्यास्त होने में तो अभी बहुत समय है आज दिन भर में तो मै इतना धन राजकोष से ले जाऊंगा जितने में मेरा कई पीढ़ी आराम से जीवन भर खा सकेगा।
यह सोचकर वह व्यक्ति प्रसन्नता की लालिमा लिए अपने घर की तरह चला गया और घर पहुंचकर अपनी पत्नी को सारी बातें सुना डाली की किस प्रकार उनके लिए राजा के मन में कितनी उदारता है।
पत्नी भी पति की इस बात को सुनकर खुशी से आनंदित हो उठी और बोली – यह तो बड़ी सौभाग्य की बात है, आप तुरंत जाइये और जितना अधिक हो वहां से धन लेकर आइये।
दरिद्र व्यक्ति बोला – मुर्ख स्त्री कितने दिन हो गए हैं मेने भोजन तक नहीं किया है ऐसे में भूखा रहकर धन को कैसे उठा कर ला पाउँगा भला? ऐसा कर पहले तू कहीं से उधार लेकर मेरे लिए भोजन तो बना।
मै तो भोजन करके ही जाऊंगा वैसे भी सारा दिन पड़ा है धन लाने के लिए अभी जल्दबाजी भी क्या है। बेचारी स्त्री क्या करती दौड़ी-दौड़ी गयी और बनिए से उधार में सामान लेकर आयी। जल्दी से खाना बनायीं और पति को खिलाई फिर राजमहल जाने के लिए तुरंत आग्रह करने लगी।
परन्तु दरिद्र व्यक्ति ने आज बहुत दिनों बाद डट कर खाना खाया था, उसे खाना खाते ही आलश्य आ गया उसने सोंचा कि थोड़ी देर में जाकर सोना ले आऊंगा अभी थोड़ा आराम कर लेता हूँ अतः वह आराम करने के लिए टेल गया। व्यक्ति गहरी नींद का आनंद लेने लगा, जैसे-तैसे करके उसकी पत्नी ने उसे उठाया और राजमहल की तरफ रवाना कर दिया।
वह व्यक्ति रास्ते में कुछ ही दूर गया था कि उसे एक नट दिखा जो बड़ा ही सुन्दर अभिनय कर रहा था व्यक्ति ने सोंचा क्यों ना कुछ समय तक यह नाटक देख लिया जाये फिर राजमहल तो जाना ही है। और एक बार भी वहां से हीरे जवाहरात ले आता हूँ फिर तो आराम ही आराम है।
वह व्यक्ति नाटक देखने के लिए वहीँ बैठ गया व देखते ही देखते वह राजमहल जाकर धन लाने की बात को भूल गया। जब नाटक समाप्त हुआ तब उसे धन वाली बात याद आयी और वह दौड़ते भागते राजमहल के पास पंहुचा अफसोस दिया हुआ समय निकल चूका था सूर्य अस्त हो चुकी थी।
बेचारे व्यक्ति को एक फूटी कौड़ी नसीब नहीं हुई वह जोर-जोर से रोता व सर को पटकता हुआ घर की तरफ वापस लौटा – उसने समय की कीमत को नहीं समझा इसलिए उसे पछताना पड़ा
इसलिए कहा भी गया है –
अब पछिताये होत क्या
जब चिड़िया चुग गयी खेत
दोस्तों समय का हमेसा सदुपयोग करें यह कितना कीमती है इसे बताने की आवश्यकता नहीं है इसे आप भली भांति समझते हैं। क्योंकि पैसा अगर एक बार चला गया तो उसे दोबारा पाया जा सकता है परन्तु जो समय बीत जाता है वह वापस नहीं आता।
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चाँद में दाग और दीपक के नीचे अँधेरा प्रेरक प्रसंग – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक हिंदी कहानी
एक समय की बात है, गुरूजी अपने शिष्यों को ज्ञान की बातें बता रहे थे, और उनकी समस्याओं और प्रश्नो का जवाब (हल) भी दे रहें थे। जब लगा की शिष्यों की शिक्षा पूरी हो गयी तब गुरूजी ने सभी शिष्यों से कहां – शिष्यों अगर आप के मन में अभी भी कोई शंका या प्रश्न हो तो मुझसे पूछ सकते हो।
गुरूजी की इस बात को सुनकर एक शिष्य ने जो गुरूजी के पास काफी लम्बें समय से रहता था और वह अपने आप को बहुत ही ज्ञानवान भी समझता था उसने सवाल किया – गुरूजी आप मुझे बताइये की चाँद में दाग क्यों होता है ? और यह भी बताएं की दीपक के नीचे अंधेरा क्यों होता है ?
शिष्य द्वारा इस सवाल के किये जाने पर गुरूजी निराश हो गए और दुखी मन से शिष्य को कहा – शिष्य, मुझे तुमसे ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी, तुम्हें मेरे साथ रहते हुए बहुत समय हो गया है, परन्तु अभी भी तुम ज्ञान की पहली सीढ़ी ही नहीं चढ़ पाए हो, अभी भी वहीँ पर अटके हुए हो।
गुरूजी की इस बात को सुनकर शिष्य अत्यत दुखी हुआ. उसे गुरूजी द्वारा ऐसे शब्द कहें जाने की उम्मीद नहीं थी। और वह शिष्य अपने आप को ज्ञानवान अक्लमंद भी समझता था सो उसके अहम को बहुत ठेस पंहुचा।
उसने गुरूजी से कहा – गुरूजी, मै इतने समय से आपसे ज्ञान अर्जित कर रहा हूँ आपके साथ रहकर कितना कुछ ज्ञान की बातें सीखा है मैने फिर भी आप मेरे सवालों का ऐसा उत्तर दे रहे हैं, आपके इस उत्तर ने मुझे अत्यंत दुःख पहुंचाया है।
गुरूजी ने जवाब दिया की दुःख तो मुझे भी बहुत हुआ है शिष्य तुम्हारे इस सवाल से काश इन सवालों के जगह पर तुम ये पूछते – गुरूजी, चाँद में इतनी चांदनी क्यों है ? और दीपक में इतनी रोशनी क्यों है ?
फिर मै तुम्हें जीवन के अत्यंत रहस्यों में से कुछ मोती चुन कर देता, फिर मै तुम्हें बताता की जीवन क्या है. जीवन का अर्थ व मतलब क्या है।क्योंकि जब तुम किसी की अच्छाइयों को छोड़कर उसके बुराइयों पर ध्यान देते हो या उसके विषय में चिंतन करते हो, तो जाने अनजाने ही सहीं परन्तु उन बुराइयों के कुछ हिस्से को अपने अंदर उतार लेते हो।
ठीक इसी प्रकार अगर आप किसी बुरे चीज़ में भी सिर्फ अच्छाइयों को देखते हो उस अच्छाइयों को बारें में चिंतन करते हो तब आपमें उस अच्छाई का कुछ अंश समाहित हो जाता है।
बड़ा आदमी बनने की सीख प्रेरक प्रसंग – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक हिंदी कहानी
एक वृद्धा थी, शारीरिक रूप से इतना वृद्ध हो जाने के बाद भी बोझा ढोने जैसे काम उसे करनी पड़ती थी। बेचारी क्या करती पेट पालने के लिए शायद उसके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था। आज भी वह सड़क के किनारे इसी आशा में खंडी थी की कोई बोझा को उठाने में उसकी मदद कर दे।
तभी एक व्यक्ति उस सड़क से गुजरते हुए वृद्धा के पास से निकला, वृद्धा ने उस व्यक्ति को आवाज लगायी और अपने बोझा को उठाने के लिए उस व्यक्ति से मदद की याचना की (मदद मांगी) उस व्यक्ति के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे,
और उसने नाक और भौ को खीझते सिकोड़ते हुए कहा ” मेरे पास अभी समय नहीं है ” मुझे बड़े काम करना है, बड़ा बनना है ऐसे कहते हुए वह व्यक्ति आगे बढ़ गया।
थोड़ी दूर आगे चलने पर व्यक्ति को एक वृद्ध मिला जिसकी गाड़ी पूरी तरह कीचड़ में फस चुकी थी और उसका निकलना मुश्किल सा हो गया था, व्यक्ति की हिष्ट-पुष्ट शरीर को देखकर उस बुजुर्ग ने उसे आवाज लगाया, बेटा क्या तुम मेरे गाड़ी को कीचड़ से निकालने में मेरी मदद करोगे।
व्यक्ति गुस्से से झल्लाया, बोला – दिखाई नहीं देता क्या, मेरे कपडे नए है। अब तुम्हारें चक्कर में इसे खीचड़ से ख़राब करूँ क्या। इतना बेवकूफ समझा है मुझे, मुझे बड़ा काम करना है, बड़ा आदमी बनना है, इतना कहते हुए व्यक्ति अपनी राह चला।
थोड़ी ही दूर चला था की उसे एक अंधी बुढ़िया दिखाई दी, व्यक्ति की आहाट पाकर अंधी बुढ़िया ने उससे मदद की गुहार लगाई और दयनीय स्वर में बोली, अरे भाई क्या तुम मुझे सड़क की दूसरी ओर एक झोपडी है वहां तक पंहुचा दोगे, आपकी बहुत मेहरबानी होगी।
व्यक्ति गुस्से से तिलमिला उठा और बोला तुम्हें पता नहीं की मुझे बड़ा काम करने जाना है, बड़ा आदमी बनना है, मुझे जरा जल्दी है।
इस तरह व्यक्ति चलते-चलते आखिर महर्षि रमण के आश्रम में पहुंच गया। महर्षि जी अपनी पूजा पाठ और ध्यान के लिए तैयार हो ही रहे थे। व्यक्ति वहां पहुंच कर महर्षि का अभिवादन किया और वहीँ उनके पास बैठ गया
और बोला मै आ गया हूँ आप बताइये की आपके लिए क्या करूं, व्यक्ति की इस बात में अहंकार झलक रही थी।
महर्षि ने उस व्यक्ति की ओर देखा और हल्की मुस्कान उनके चेहरे पर उभरी मानों वे अपने दिव्य चछुओं से व्यक्ति की सारी हरकतों को देख रहे थे।
वे मुस्कुराते हुए व्यक्ति से पूछे तुम वही व्यक्ति हो जिसने कल के सत्संग में बड़ा काम करने और बड़ा बनने के आह्वान पर अपनी स्वीकृति जताई थी।
व्यक्ति बोला – जी हाँ भगवन।
अच्छी बात है, कुछ देर बैठो, मुझे एक व्यक्ति की ओर प्रतीक्षा है। उसने भी सत्संग के विसर्जन के बाद इसी प्रकार की इक्षा जताई थी, जो तुमने जताई है। परन्तु उसे अभी तक तो आ जाना चाहिए था, उसे भी मैने यही समय बताया था। (महर्षि के चेहरे पर प्रतीक्षा का भाव था)
वह व्यक्ति जोर से हंसा -” जो व्यक्ति समय का भी ध्यान ना रखे, उससे भला क्या ही अपेक्षा की जा सकती है। महर्षि उस व्यक्ति के व्यंग के पीछे छुपे विचार को समझ गए, महर्षि बोले- फिर भी हमें कुछ देर इंतज़ार करना चाहिए।
इतने में वह व्यक्ति आ गया जिसका इंतज़ार किया जा रहा था, उसकी सांस तेज़ चल रही थी (हांफ रहा था) और उसके कपडे भी गीले थे, उस व्यक्ति ने महर्षि को झुककर प्रणाम किया और विनम्रता के साथ उनके सामने खड़ा हो गया।
महर्षि ने उसे बैठने के लिए कहा और वह बैठ गया। महर्षि ने उस दूसरे व्यक्ति से पूछा – कहो वत्स तुम्हे थोड़ी देरी हो गयी, और तुम्हारी हालत ऐसे कैसे हो गयी।
व्यक्ति विनम्रता से बोला – भगवान, वैसे तो मै समय पर ही पहुंच जाता परन्तु रास्ते में एक बोझ उठाने वाली वृद्ध महिला की मदद करने में, एक वृद्ध गाड़ीवाले के गाड़ी को कीचड़ से निकालने में, और एक अंधी वृद्धा को उसके झोपडी तक पहुंचाने में थोड़ी विलंब हो गयी,
परन्तु फिर भी मैने समय पे पहुंचने की कोसिस की पर नहीं पहुंच सका, इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ गुरुदेव। महर्षि ने मुस्कुराते हुए पहले आने वाले व्यक्ति की तरफ देखा और बोले – वत्स निश्चित ही तुम्हारी राह भी वही थी, जिससे यह आया है। तुम्हे सेवा के अवसर मिले परन्तु तुमने उन्हें करने से इंकार कर दिए।
बड़े काम के चक्कर में तुम यह भी भूल गए की छोटे-छोटे कामों को करके ही बड़ा काम किया जाता है। छोटे कामों से ही तो बड़े कामों की नीव रखी जाती है, और बड़ा बना जाता है। अब तुम ही बताओ की मेरे सेवा भाव में सहयोग देने के तुम मेरे शिष्य बन सकते हो क्या।
व्यक्ति खिसियाता, तिलमिलाता हुआ मौन रह गया।
यहाँ हर कोई अपना उल्लू सीधा करने में लगा है – ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक प्रेरक प्रसंग
एक समय कि बात है एक हंस और हंसिनी वातावरण प्रकृति का मजा लेते हुए घूमते-घूमते एक वीरान रेगिस्तान जैसे जगह पर पहुंच जाते हैं।
हंसिनी ने हंस से कहा ये हम किस उजड़े हुए इलाके में आ गये हैं ?
यहाँ तो ना ही जल है, ना जंगल है और ना ही यहां ठंडी हवा चल रही है। यहां तो हमारा जीना ही मुश्किल हो जायेगा।
हंस और हंसिनी को भटकते-भटकते रात हो गयी, तो हंस ने हंसिनी से कहा देखो रात भी गई इसलिए हम किसी भी तरह यहाँ आज की रात बिता लेते हैं, फिर सुबह होते ही यहाँ से चले जायेंगे।
जब रात हुई तो हंस और हंसिनी एक पेंड पर बैठे हुए थे, उसी पेंड पर एक उल्लू भी बैठा हुआ था।
वह उल्लू जोर से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने कहा – कैसा जगह है ये यहां तो रात में भी नहीं सो सकते। ये उल्लू अब चिल्ला-चिल्ला कर परेशान कर रहा है।
हंस ने हंसिनी को समझाते हुए कहा कि किसी तरह यहाँ आज की रात काट लेते हैं, क्योंकि अब मुझे समझ आ गया है कि यह जगह इतना सुनसान क्यों है। इस तरह का उल्लू जिस जगह पर रहेगा वहां वीरान तो रहेगा ना।
पेंड पर बैठा उल्लू हंस हंसिनी की इन बातों को सुन रहा था।
जब सुबह हुई तब उल्लू निचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरे वजह से आप को रात में में तकलीफ हुई उसके लये मुझे क्षमा करें
हंस ने कहा कोई बात नहीं उल्लू भाई आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
ऐसा बोलकर हंस अपनी हंसिनी के साथ वहां से निकलने लगा, तभी उल्लू चिल्लाया।
अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका और बोला – आपकी पत्नी ?
अरे उल्लू भाई यह हंसिनी है मेरी पत्नी है रात में हम दोनों साथ में आये थे अब साथ में जा रहें हैं।
उल्लू ने कहां – तुम चुप रहो, यह मेरी पत्नी है।
अब दोनों के बीच वाद-विवाद शुरू हो गया हंस कहता मेरी पत्नी है और उल्लू कहता मेरी पत्नी है। खबर सब तरफ आग कि तरह फैल गयी और आस पास के पक्षीगण एकत्रित हो गए। कई गांव की जनता बैठी, पंचायत बुलाई गयी, सब पंचलोग उपस्थित हुए।
पंचलोग बोले – भाई किस बात का विवाद हो रहा है।
सभी ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है।
फिर लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गए और कहा कि भाई बात तो यह सहीं है कि हंसिनी हंस की पत्नी है परन्तु ये तो थोड़ी देर में चले जाएंगे परन्तु हमारे बीच उल्लू को तो हमेसा रहना है। इसलिए फैसला को उल्लू के हक में सुनाना चाहिए।
फिर क्या था पंचों ने अपना फैसला सुनाया कि सारे गवाहों और सबूतों को मद्दे नजर रखते हुए पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी, उल्लू की ही पत्नी है। और हंस तत्काल गांव छोड़कर यहाँ से जाये।
यह सुनकर हंस बेचारा हैरान था वह रोने, बिलखने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया है, उसके साथ अन्याय हुआ है। उल्लू ने मेरी पत्नी लेली ऐसा कहते हुए रोते बिलखते वह वहां से जाने लगा।
तब उल्लू ने हंस को आवाज लगाई – हे मित्र हंस, रुको कहां जा रहे हो।
हंस ने कहा अब क्या हुआ भैया, पत्नी तो आपने ले ही ली अब क्या मेरी जान भी लोगे।
उल्लू बोला – नहीं मित्र हंसिनी तुम्हारी ही पत्नी है और तुम्हारी ही रहेगी।
कल रात जब मै चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका इतना उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहां उल्लू रहता है।
मित्र ऐसा नहीं है, बल्कि यह इलाका इतना वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ हर कोई अपना उल्लू सीधा करने में लगा है।
अंतिम शब्द
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