रामानुजन के रूप में भारत को गणित का एक महान विद्वान् मिला जिनके गणितीय अनुसंसाधनो द्धारा भारत का आकाश आलोकित हो उठा. स्कुल शिक्षा भी पूरी न कर पाने के बावजूद रामानुजन ने उच्च गणित के क्षेत्र में ऐसा काम किया कि गणित की दुनिया में उनका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया.
वे अपने सूझ-बुझ और अनंत परिश्रम के बल पर बने… महान गणितज्ञ थे।
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय (Biography of Srinivasa Ramanujan)
नाम | श्री निवास रामानुजन |
रामानुजन जी का जन्म | 22 दिसम्बर 1887 (ग्राम इरोड- तमिलनाडु) |
शिक्षा | केम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
पत्नी का नाम | जानकी देवी (विवाह 1909 – 1920) |
रामानुजन जी का धर्म | हिन्दू धर्म |
कार्य क्षेत्र | गणित का क्षेत्र |
रामानुजन जी का मृत्यु | क्षयरोग के कारण |
रामानुजन जी को मिली प्रसिद्धि | लैडी-रामानुजन स्थिरांक, रामानुजन-सोल्डनर स्थिरांक, रामानुजन थीटा फलन, राजर्स-रामानुजन तत्समक, रामानुजन अभाज्य, कृत्रिम थीटा फलन, रामानुजन योग |
श्री निवास रामानुजन का जन्म (Birth of Sri Niwas Ramanujan)
गणित के दुनिया में सूरज की तरह तरह चमकने वाले भारत के महानतम गणितज्ञ रामानुजन जी का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था.
उनके पिता कुप्पु स्वामी श्रीनिवास अयन्गर एक कपड़े की दूकान में मुंशी का काम करते थे और उनकी माँ कोमलतामम्ल एक आम हिन्दुस्तानी गृहणी थी.
श्री निवास रामानुजन की शिक्षा (Education of Sri Niwas Ramanujan)
10 साल की उम्र में ही रामानुजन में गणित के प्रति विशेष रूचि उत्त्पन हो गयी थी, सन 1897 में प्राथमिक परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया फिर उच्च प्राथमिक की परीक्षा में उन्होंने 45 में 42 अंक प्राप्त कर शिक्षको को हैरान कर दिया.
सन 1904 में उन्होंने 10 की परीक्षा पास की और इसी साल घन और चतुर्घात समीकरण हल करने के सूत्र खोज निकाले कुम्भकोणम के राजकीय महा विद्यालय में फेलो आफ आर्ट यानी इंटरमीडिएट प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने के बाद ही उन्होंने परिमिति और अपरिमिति श्रेणियों की खोज करना सुरु कर दिया था.
गणित उनके लिए पागलपन बन गया था, इसी वजह से वे एफए द्वितीय वर्ष में गणित को छोड़कर बाकि सभी विषयो में फ़ैल हो गए इसी दौरान सन 1905 में उन्होंने अनेक मसाकलों व श्रेणियों के बिच सम्बन्धो की खोज भी की.
दिसम्बर 1906 में व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में उन्होंने एफए परीक्षा पास करने की कोशिश भी की, पर वे कामयाब न हो सके और इसी के साथ उनकी पारम्परिक शिक्षा भी समाप्त हो गया.
इनसे बाद स्वतंत्र रूप से काम करते हुए रामानुजन इंडियन मैथमैटिक्स सोसाइटी के गणितज्ञों के सम्पर्को में आये और एक गणितज्ञ के रूप में उन्हें पहचान मिलने लगी.
रामानुजन की गणितीय सूत्रों को निकालने की विधिया इतनी जटिल होती थी कि गणित की पत्रिकाएं भी उन्हें ज्यो का त्यों प्रकाशित करने में असमर्थ होती थी.
सन 1911 में ‘बरनॉली संख्याओं के कुछ गण’ मुख्य भाग में। ‘जर्नल ऑफ इंडियन मैथमेटिक्स सोसायटी’ में प्रकाशित हुए उनकी प्रथम शोध पत्र की विषय वस्तु एवं सैली इतनी जटिल थी की प्रकासन के पहले उसे कई बार संसोधित किया गया.
रामानुज की प्रतिभा को सही तौर पर पहचाना केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के तत्कालीन विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने.
उन्होंने रामानुज को कैम्ब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया और यही से रामानुज के जीवन में नए युग का प्रारम्भ हुआ। इंग्लैंड में अपने प्रवाश के दौरान रामानुज ने उच्च गणित के क्षेत्रों में जैसे – संख्या सिद्धांत, इलिप्टिक फलन, हाइपर ज्योमेट्रिक श्रेणी इत्यादि में अनेक महत्वपूर्ण खोज की।
उच्च कम्पोजिट संख्याओं के सम्बन्ध में किये गए एक विशेष शोध के कारण मार्च 1916 में उन्हें कैम्ब्रिज विस्वविद्यालय द्धारा बी. ए. की उपाधि प्रदान की गयी.
उनकी प्रसिद्धि धीरे-धीरे बढ़ने लगी और सन 1918 में उन्हें रॉयल सोसायटी का फेलो नामित किया गया. ऐसे समय में जब भारत गुलामी में जी रहा था.
तब एक अस्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसायटी की सदस्य्ता मिलना बहुत बड़ी बात थी और रॉयल सोसायटी के पुरे इतिहास में इनसे कम आयु का सदस्य आज तक कोई नहीं हुआ है.
रॉयल सोसायटी के सदस्यता के बाद वर्ष 1918 में ही वह टेनिट्री कॉलेज, केम्ब्रिज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने. परन्तु इंग्लॅण्ड का मौसम उन्हें रास नहीं आया, वहा की जलवायु और रहन-सहन में वे ढल नहीं पाए, उनका स्वास्थ खराब होता चला गया और वे क्षय रोग से ग्रस्त हो गए.
श्री निवास रामानुजन जी का अंतिम समय (Last time of Shri Niwas Ramanujan ji)
स्वास्थ्य के साथ न देने और डाक्टरों के सलाह से वे भारत आ गए, बिमारी के हालत में भी उच्च स्तरीय शोध पत्र लिखे, करना बहुत कुछ था पर सरीर साथ नहीं दे पाया.
फिर वह घडी भी आ गयी जब 26 अप्रेल 1920 की सुबह महज 32 साल की उम्र में वे दुनिया को अलविदा कह दिए और अपना नाम गौस, यूलर, जैकोबी जैसे महान गणितज्ञों में शामिल कर गए. उनकी गणित की प्रतीमान को भुला पाना मुश्किल है.
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