Pollution : प्रदूषण आज के समय में एक ऐसी समस्या है. जो लगातार रोकथाम के प्रयासों के बावजूद भी बढ़ता ही जा रहा हैं… और बढे भी क्यों ना, क्योंकि ज्यादातर लोग प्रदूषण मामले में जागरूक होना ही नहीं चाहते.
लोग प्रदूषण के मामले में लम्बे-लम्बे भाषण देंगे परन्तु इससे निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएंगे. प्रदुषण (pollution) दूर करना है और स्वस्छता लाना है. यह केवल बोलने की बातें हो गयी है. प्रदूषण निपटारा संबंधित योजनाओं का रफ़्तार भी धीमा हो चुका है.
इसी प्रदूषण को मुख्य नजर रखते हुए हम आज के इस लेख – प्रदुषण क्या है सम्पूर्ण जानकारी (what is pollution in hindi) में प्रदूषण के सभी पक्षों को बारीकी से जानने की कोसिस करेंगें – इसलिए कृपया करके यह लेख पूरा पढ़ें –
प्रदूषण क्या है – What is Pollution
प्रदूषण – वायु, जल और मृदा की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछित परिवर्तन प्रदूषण कहलाता है. जो हानिकारक रूप से जीवन को प्रभावित करता है. तथा किसी भी जीव जंतु के लिए स्वास्थ्य संबंधित खतरा उत्पन्न करता है.
प्रदूषण की परिभाषा – Definition of Pollution
प्रदूषण ….. जीवमण्डल के किसी भी घटक में वह प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष परिवर्तन जो जीवित घटकों के लिए हानिकारक साबित हो तथा औयोद्योगिक प्रगति, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक पूंजी व सामान्य पर्यावरण को क्षति पहुचाये तथा मानव जाति के लिए नुकसान देय हो प्रदूषण कहलाता है.
प्रदूषक क्या है – What is pollutant
सामान्य शब्दों में कहा जाये तो.. प्रदूषण उत्पन्न करने वाले पदार्थों को प्रदूषक कहा जाता है. प्रदूषक दो प्रकार का होता है.
- अपघटनीय प्रदूषक
- अनपघटनीय प्रदूषक
अपघटनीय प्रदूषक क्या है – What is degradable pollutant
वे पदार्थ जो सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित होकर अपने विषाक्त प्रभाव को खो देते हैं उन्हें अपघटनीय प्रदूषक कहा जाता है.
अपघटनीय प्रदूषक के उदाहरण – जैवीय अवशिष्ट, वाहित मल इत्यादि.
अनपघटनीय प्रदूषक क्या है – What is non-degradable pollutant
ऐसे पदार्थ जो सूक्ष्म जीवों द्वारा भी अपघटित नहीं हो पाते, अनपघटनीय प्रदूषक कहलाते हैं.
अपघटनीय प्रदूषक के उदाहरण हैं – आर्सेनिक, कैडमियम, पारा, सीसा इत्यादि.
प्रदूषण के प्रकार – Types of pollution
प्रदूषण के विभिन्न प्रकार हैं जिनकी सूची विस्तार पूर्वक नीचे दी गई है
1. वायु प्रदूषण क्या है – What is air pollution
वायु प्रदूषण का कारण वायु में अवांछित ठोस या गैंस कणों की इतनी मात्रा में उपास्थिती है कि वह मानव व पर्यावरण के लिए हानिकारक साबित हो जाये.
वायु प्रदूषण के प्रकार – types of air pollution
वायु प्रदूषण को अनेक भिन्न-भिन्न रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
प्राथमिक प्रदूषक – primary pollutants
वे प्रदूषक जो प्राकृतिक रूप से या मानवीय क्रियाकलाप के द्वारा सीधे वायु में जाकर मिल जाते हैं प्राथमिक प्रदूषक कहलाते हैं.
प्राथमिक प्रदूषक के उदाहरण हैं – ईंधन से निकलने वाली सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन तथा कणिकाएं इत्यादि.
a. कार्बन मोनो ऑक्साइड
कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO) जीवाश्म ईंधन के पूर्ण रूप से नहीं जलने पर बनता है. CO उत्सर्जन 50% तक ऑटोमोबाइल्स से निकलता है. यह सिगरेट के धुएं पर भी उपास्थित होता है.
कार्बन मोनो ऑक्साइड सभी जंतुओं के लिए हानिकारक है. यह श्वसन के साथ अंदर जाकर रक्त की ऑक्सीजन क्षमता को कम कर देता है.
b. हाइड्रोकार्बन
हाइड्रोकार्बन प्राकृतिक रूप से कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के समय एवं श्वास प्रकार के पौधे से उत्पन्न होते हैं. जैसे चीड़ के वृक्ष, मीथेन वायुमण्डल में प्रचुर मात्रा में भूमि से निकला हाइड्रोकार्बन है. यह बाढ़ वाले धान के खेतों तथा दलदल से उत्पन्न होता है.
फार्मेल्डिहाइट घरेलु स्त्रोतों से उत्पन्न होता है. जैसे – नया बीज बना हुआ कारपेट, आतंरिक प्रदूषण फैलाता है. हाइड्रोकार्बन जीवाश्म ईंधनों के जलने से भी प्राप्त होता है.
c. सल्फर डाई ऑक्साइड
सल्फर युक्त कोयला जलाने पर बहुत अधिक प्रदूषक हो जाता है, वायु में सल्फर डाई आक्साइड की उच्च सांद्रता गंभीर श्वसन सम्बंधित समस्याओं को जन्म देता है. यह पौधों के लिए भी हानिकारक है.
d. नाइट्रोजन ऑक्साइड
नाइट्रोजन ऑक्साइड लाल भूरे रंग की धुंध संकीर्ण शहर के यातायात की वायु में रहती है. जो हृदय तथा फेफड़ों की समस्याओं को बढाती है. यह कैंसर जनक हो सकती है. नाइट्रोजन ऑक्साइड अम्ल वर्षा को बढ़ाता है. क्योंकि यह जल के साथ मिलकर नाइट्रस अम्ल व अन्य अम्ल बनाता है.
e. क्लोरो फ्लोरो कार्बन
यह क्लोरीन, फ्लुओरीन तथा कार्बन तत्वों के साधारण यौगिक है. इसी कारण इसे संयुक्त क्लोरो फ्लोरो कार्बन संयुक्त नाम से जाना जाता है. इसके माध्यम – AC, रेफ्रीजरनेटर, अग्निशामक इत्यादि है. जब यह उत्सर्जित होकर वायुमण्डल के समतापमण्डल में पहुंचते हैं.
तो वहां पर स्थित ओजोन गैस की परत का क्षय प्रारम्भ कर देते हैं. जिस कारण धरती पर सूर्य की पराबैगनी किरणों का विकिरण अधिक मात्रा में होने लगता है. जो विविध प्रकार के चर्मरोगों एवं जलवायु परिवर्तन का कारण बनती है.
f. कार्बन डाई ऑक्साइड
कार्बन डाई ऑक्साइड एक आवश्यक गैस है जो जीव जगत के लिए अत्यधिक आवश्यक है. हरे पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कर अपना भोजन बनाते हैं.
परन्तु किन्ही कारणवश वायुमंडल में इसकी मात्रा बढ़ जाती है. तो यह ग्रीन हॉउस प्रभाव में वृद्धि करती है. क्योंकि इसके कारण धरती से ऊष्मा के अंतरिक्ष में परिवर्तन की गति धीमी हो जाती है. जिसके कारण तापमान वृद्धि होने से जलवायु परिवर्तन हो रहा है.
g. मीथेन
मीथेन गैस भी हरित गृह प्रभाव के लिए जिम्मेदार है. यह कोयले की खानों, घरेलु पशुओं जैसे गाय, भैस, बकरी, आदि के मल धान के खेतों, नम भूमि आदि में प्रचुर मात्रा में स्त्रावित होती है. समतापमण्डल में मीथेन की सांद्रण अधिक होने से जल वाष्प में वृद्धि होती है जिससे ग्रीन हॉउस प्रभाव उत्पन्न होता है.
द्वितीयक प्रदूषक – secondary pollutants
सूर्य के विद्युत चुम्बकीय विकिरणों के प्रभाव के अधीन प्राथमिक प्रदूषकों तथा सामान्य वायुमण्डल यौगिक के बीच रासायनिक अभिक्रियाओं के परिणामस्वरुप द्वितीयक प्रदूषकों का निर्माण होता है.
उदाहरण के लिए द्वितीयक प्रदूषक सल्फर डाई ऑक्साइड, वायुमण्डल की आक्सीजन के साथ अभिक्रिया कर सल्फर डाई ऑक्साइड बनाता है. जो एक द्वितीयक प्रदूषक है.
सल्फर डाई ऑक्साइड जलवाष्प से मिलकर एक एक और द्वितीयक प्रदूषक सल्फ्यूरिक अम्ल बनाता है. जो कि अम्ल वर्षा का एक घटक है. एक और उदाहरण के रूप में शहरी क्षेत्रों के ऊपर किसी खुली धुप वाले दिन ओजोन का बनना इत्यादि.
वायु प्रदूषण का नियंत्रण व रोकथाम – control of air pollution
- सहीं ईंधन का चुनाव जिसमे उत्सर्जन के समय कम प्रदूषण फैले
- औद्योगिक तरीकों में परिवर्तन हो और कम प्रदूषण वाले यंत्र लगाए जाये
- उत्पादन स्थलों का सहीं चुनाव एवं उद्योगों का क्षेत्रीकरण, जिससे प्रदूषण स्त्रोतों का वितरण हो जाये
- प्रदूषकों को कम करने या पूरी तरह समाप्त करने का मुख्य तरीका है – प्रदूषकों का ताप या उत्प्रेरक दहन. इससे प्रदूषक कम जहरीले हो जाते हैं. यंत्र के द्वारा प्रदूषकों को जमा कर दिया जाये. जिससे प्रदूषकों को वातावरण में जाने से रोका जा सके.
2. जल प्रदूषण क्या है – what is water pollution
किसी भी प्रकार की भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक परिवर्तन, जिससे जल की गुणवत्ता घट जाती है. जल प्रदूषण कहलाती है.
उदाहरण के लिए – नगरपालिका क्षेत्र का सीवेज स्थल या फैक्ट्रियों का बहिस्राव स्थल, शहर से निकला गन्दा पानी, कृषि क्षेत्र का पानी इत्यादि.
जल प्रदूषण के प्रकार – types of water pollution
जल प्रदूषण के प्रकारों की सूची नीचे देखें –
- नदी जल प्रदूषण
- भूमिगत जल प्रदूषण
- झील जल प्रदूषण
- समुद्रीय प्रदूषण.
जल प्रदूषण से संबंधित तालिका
प्रदूषक | प्रदूषक स्त्रोत | उसके प्रभाव |
---|---|---|
जैवकीय कारक जीवाणु, परजीवी कवक तथा प्रोटोजोवा | मानव जल-मल एवं पादप अपशिष्ट सड़े-गले अपशिष्ट पदार्थ औद्योगिक क्षेत्रों के प्रदूषण | इन अपशिष्ट पदार्थों को ऑक्सीजन-भोगी जीवाणु खाते हैं. इससे निकाय की ऑक्सीजन समाप्त होने लगती है. ऑक्सीजन के आभाव से जीव नष्ट हो जाते हैं. दुर्गन्ध निकलती है. |
रासायनिक कारक अकार्बनिक रसायन तथा खनिज अम्ल लवण, धातुएं, जैसे – सीसा, पारा पादप पोषक जैसे फॉस्फेट तथा नाइट्रेट्स | औद्योगिक अपशिष्ट, अम्ल जमाव, सीसायुक्त गैसोलीन, सीसा गलन, सिचाई, पीड़कनाशी, कृषि अप्रवाह, खनन, तेल खनन स्थान, घरेलु जल-मल अपर्याप्त जल-मल जल उपचार, खाद्य संसाधन उद्योग, फॉस्फेट युक्त डिटर्जेंट. | आनुवांशिक व जन्मजात दोष पैदा होते हैं. हानिकारक खनिजों की जल में अधिक विलयशीलता घरेलू, कृषि, एवं औद्योगिक उपयोग के लिए जल को अनुपयुक्त बना देते हैं मृदा में लवणता वर्धन जल निकायों के पारितंत्र में गड़बड़ी तथा जल सुपोषण पैदा होता है. |
कार्बनिक रसायन पीड़कनाशी, शाकनाशी, डिटर्जेंट, क्लोरीन के यौगिक, तेल ग्रीज तथा प्लास्टिक्स | कृषि वानिकी पीड़क नियंत्रण उद्योग, घरेलु तथा औद्योगिक अपशिष्ट, कागज उद्योग ब्लीचिंग प्रक्रिया मशीन तथा पाइपलाइन अपशिष्ट, समुदाय तथा औद्योगिक उपयोग | जलीय जीवन के लिए आविषि तथा उन जीवो के लिए भी जो ऐसी जल क्रियाओं पर निर्भर करते हैं. जल निकायों का सुपोषण |
रेडियोसक्रिय पदार्थ | शोध प्रयोगशालाओं तथा अस्पतालों से निकले नाभिकीय अपशिष्ट, यूरेनियम अग्रस्क का संसाधन नाभिकीय संयंत्र | रेडियोन्यूकलाइड खाद्य-श्रृंखला में प्रवेश करते है और जन्मजात एवं आनुवांशिक दोष पैदा करते हैं, कैंसर के उत्पन्नकारी कारक |
भौतिक कारक कणिकाएं तथा ऊष्मा | मृदा अपरदन कृषि से अप-प्रवाह, खनन, वानिकी तथा भवन निर्माण क्रियाकलाप, बिजलीघर, औद्योगिक सीतलन | जलमार्गों, बंदरगाहों तथा निकायों में भराव तापमान की वृद्धि से जल में आक्सीजन की विलयशीलता कम हो जाती है. |
जल प्रदुषण के प्रभाव – effects of water pollution
दूषित जल से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती है. पारे द्वारा दूषित जल के उपयोग में मिनीमाटा रोग होता है. यह रोग शुरुआत में जापान के मिनिमाटा खांडी में पारा संक्रमित मछलियां खाने से हुआ था.
केडियम दूषित जल से ईटाई-ईटाई बीमारी एवं लीवर तथा फेफड़ों का कैंसर होता है. पेयजल में नाइट्रेट की अधिक मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. तथा इससे नवजात शिशुओं की मृत्यु भी हो जाती है.
नाइट्रेट हीमोग्लोबिन के साथ प्रक्रिया कर मीथेमोग्लोबिन बनाता है. जो ऑक्सीजन परिवहन को विकृत कर देता है. इसे मीथेमोग्लोबिनेमिया या ब्लू बेली सिण्ड्रोम कहते हैं. पेयजल में क्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से दातों से संबंधित रोग होते हैं.
हड्डी में कंडापन व अकड़न आ जाती है. तथा जोड़ों में दर्द होता है. जिसे केकाल फ्लूरोसिस कहते हैं.
भारत में कई जगहों पर भूमिगत जल आर्सेनिक से संक्रमित हो जाते हैं खासकर प्रकृति में पाए जाने वाले बेड़राक के आर्सेनिक से भूमिगत जल के अत्यधिक उपयोग से भूमि तथा चट्टानों के स्त्रोतों से आर्सेनिक का स्त्राव शुरू हो सकता है. तथा यह भूमिगत जल को संक्रमित करता है.
आर्सेनिक के लगातार संपर्क से ब्लैक फुट बीमारी हो जाती है. आर्सेनिक से डायरिया, पेरिफेरल, न्यूरिटा तथा हाइपरकेराटोसिस तथा फेफड़े व त्वचा का कैंसर होता है.
जल प्रदूषण पर नियंत्रण – control of water pollution hindi
जल प्रदूषण के नियंत्रण के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं –
- जल प्रदूषण के सन्दर्भ में लोगों को जागरूक करके, जागरूकता अभियान चलाकर.
- आम जनता को जल प्रदूषण एवं उससे उत्पन्न समस्याओं से अवगत कराकर.
- घरेलु कचरों का उचित उपचार के लिए जागरूक करके.
- औद्योगिक क्षेत्रों के लिए उचित नियम कानून बनाकर, ताकि कारखानों उद्योगों से निकले हुए दूषित पानी को नदी, नाले व तालाब में ना छोटा जाये.
- नगरपालिकाओं के लिए उचित नियम तथा प्रदूषण नियंत्रक यंत्रों के लिए खर्चे करनी चाहिए.
- नियमों का सख्ती से पालन तथा उलंघन पर शारीरिक व आर्थिक दंड का प्रावधान होना चाहिए.
- पर्यावरण प्रदूषण के रोकथाम के लिए पर्यावरण का बेसिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए.
3. समुद्री प्रदुषण क्या है – what is ocean pollution in hindi
पृथ्वी के लगभग 71% भू भाग पर समुद्र फैला हुआ है. इसलिए समुद्र के स्वस्छ होने पर ही पृथ्वी और पर्यावरण को स्वच्छ रखा जा सकता है. अनुमान के अनुसार
17.000 टन लोहा, 17.000 टन सीसा, 70.000 टन जिंक 8.000 टन पारा, 3.900 टन ऐंटिमनी आदि बिना किसी उपचार या अनुकरण के समुद्र में फेक दिया जाता है. इससे बहुत बड़े स्तर पर समुद्र प्रदूषण होता है.
समुदी प्रदूषण के कारण – reasons of oceanic pollution hindi
- समुदी प्रदूषण का मुख्य कारण विकशित देशों द्वारा फेका गया औद्योगिक अपशिष्ट है जो सर्वाधिक मात्रा में फेका जाता है.
- रेडियोधर्मी पदार्थों का समुद्र में निस्तारण
- परमाणवीय संयंत्रों में नाभकीय प्रदूषण
- नगरीय अपशिष्टों का समुद्र में निस्तारण
- पेट्रोलियम पदार्थों का परिवहन के समय साधारण रूप से बिना किसी दुर्घटना के भी लगभग 45 लाख मीट्रिक टन तेल समुद्र में फेक दिया जाता है.
- सागरीय दुर्घटनाओं के कारण व समुद्र के किनारे पेट्रोलियम खनन व पेट्रोलियम पदार्थ, उत्पादन संयंत्रों के अपशिष्टों के रूप में तैलीय प्रदूषण फैलाते हैं.
समुद्री प्रदूषण से प्रभाव – effects of oceanic pollution hindi
- समुद्री प्रदूषण के कारण घास के सुपोषण के अलावा कार्बन अपशिष्टों की भारी मात्रा के करण लाल लहरें पैदा हो सकती है. पादपलवक की इतनी तीव्र वृद्धि होती है कि पूरा क्षेत्र बदरंग हो जाता है. अनेक प्रजातियां भी गलफड़ों या दूसरे अंगों के काम ना कर पाने के कारण मारी जाती हैं.
- तेल जब समुद्र की सतह पर फैलता है तब एक पतली परत बनाता है. जिसे तेल परत कहते है. उस तेल परत से समुद्रीय जीवों को भारी नुकसान पहुँचता है. तेल परत खारे दलदलों के पौधों में फूल या फल लगने या बीजों से पौधे उगने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है.
- तेल आवरण के कारण प्राणियों की प्राकृतिक तापरोधिता एवं उत्प्लावकता खत्म हो जाती है. जिसके कारण अधिकतर या तो डूब जाते हैं या ठंड से मर जाते हैं. अनुमान है कि हर साल कुछ लाख समुद्री पक्षी इसी कारण मर जाते हैं.
- मछली और घोंघे का उत्पादन कम कम हो जाता है.
- पारा,संखिया, लेड जैसी धातुएं मछलियों व समुद्री जीव के माध्यम से मानव तक पहुंच जाती है जिससे खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है.
- प्रदूषित जल में नहाने से चर्म रोग की समस्या
- प्रदूषित जल के सेवन से स्वास संबंधित समस्या, लकवा इत्यादि
- मछुवारों की जीविका तथा स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव etc.
समुद्री प्रदूषण पर नियंत्रण – control on oceanic pollution
समुद्री प्रदूषण के नियंत्रण संबंधित उपाय –
- विषैले पदार्थों को समुद्र में ना डालने संबंधित कानून बनाकर
- जहाजों में तेल परिवहन के समय विशेष सावधानियां बरत कर
- तैलीय प्रदूषण को जल्द एकत्रित करके जलाकर तथा अवशोषित करके रसायनों तथा लकड़ी के बुरादे से समुद्री पानी पर से हटाना.
4. मृदा प्रदूषण क्या है – what is soil pollution
भूमि के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में कोई ऐसा अवांछनीय परिवर्तन जिसका प्रभाव मनुष्यों और अन्य जीवों पर पड़े तथा जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता नष्ट हो मृदा या भूमि प्रदूषण कहलाता है.
मृदा प्रदूषण के कारण – due to soil pollution
कृषि प्रणाली से प्रदूषण
इसमें कृषि के पश्चात उसका बचा भूसा, डंठल, घास फुस पत्तियां आदि एक स्थान पर एकत्र कर दिया जाता है. इसपर पानी गिरने से यह सड़ने लगता है. तथा जैविक क्रिया होने से यह प्रदूषण का कारण बनता है.
अकार्बनिक उर्वरक तथा कीटनाशक अवशेष मृदा के रासायनिक गुणों को बदल देते हैं तथा भूमि के जीवों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं.
खनन से प्रदूषण
इस प्रक्रिया के अंतर्गत धरती की सतह से खनन कर भूमिगत जमा पदार्थ को निकाला जाता है. इससे ऊपरी भूमि का तो नुकसान होता ही है साथ ही पूरा क्षेत्र जहरीले धातु और रसायन से संक्रमित हो जाता है.
औद्योगिक अपशिष्ट से प्रदूषण
औद्योगिक अपशिष्ट के अंतर्गत जल अपशिष्ट, मेडिकल अस्पतालों के अपशिष्ट को फेकने से भूमि प्रदूषित होती है. औद्योगिक ठोस अपशिष्ट, जहरीले कार्बनिक, अकार्बनिक, रासायनिक मिश्रण एवं भारी धातु के द्वारा मृदा को प्रदूषित करता है.
उद्योग से निकलने वाला धुवां भी पर्यावरण को प्रदूषित करता है. चिमनियों से निकलने वाले धुएं के साथ-साथ उसका कणिकीय पदार्थ भी भूमि को प्रदूषित करता है. जो बाद में सतह में आकर जम जाता है.
नाभिकीय परीक्षण प्रयोगशालाओं में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र तथा नाभिकीय विस्फोट से निकले अपशिष्ट विकिरण मृदा को संक्रमित करते हैं. रेडियो सक्रिय पदार्थ भूमि में लम्बे समय तक टीके रहते हैं.
नगरीय अपशिष्ट से प्रदूषण
इसके अंतर्गत घरेलु तथा रसोई के अपशिष्ट, बाजार के अपशिष्ट, अस्पताल के अपशिष्ट, पशुओं एवं पोल्टी अपशिष्ट, कसाई खानों का अपशिष्ट जिनका जैविक अपघटन होता रहता है, आते हैं. जैसे पॉलीथिन बैग, अपशिष्ट, प्लास्टिक बैग, बोतलें इत्यादि.
अस्पताल के अपशिष्टों में कार्बनिक पदार्थ, रासायनिक पदार्थ, धातु सुइयां, प्लास्टिक तथा शीशे की बोतलें इत्यादि. घरेलु सीवेज तथा अस्पताल के कार्बनिक अपशिष्टों को गिराने से पर्यावरण संक्रमित हो जाता है. तथा रोगाणु मनुष्य के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है.
मृदा प्रदूषण से प्रभाव – effects of soil pollution
- मृदा प्रदूषण के कारण मिट्टी के मौलिक गुणों में परिवर्तन होता है. इससे वनस्पत्तियों का विनाश होता है. कारणस्वरूप मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण तथा बंजर एवं अनुपजाऊ भूमि का क्षेत्रफल बढ़ता है. इसके कारण खाद्य सुरक्षा व कुपोषण की भी समस्या उत्पन्न होती है.
- मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारकों में एक कीटनाशकों का अधिक मात्रा में उपयोग है. लम्बे समय तक दवाओं का उपयोग मिट्टी को प्रदूषित करते हैं.
- रासायनिक पदार्थ पौधों और पत्तियों तक पहुँचता है. जो मनुष्य के उपयोग में आने से घातक रोगों का कारण बनता है.
मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण – control of soil pollution
- कीटनाशक रसायनों का प्रयोग को कम करके, जैव किटनाशों का प्रयोग करना चाहिए.
- फसल प्रबंधन के आधार पर भूमि का उपयोग किया जाना चाहिए. रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव उर्वरकों, पशुओं से प्राप्त गोबर तथा कृषि कम्पोस्ट का प्रयोग किया जाये, साथ ही समन्वित पादप पोषण प्रबंधन का प्रयोग किया जाए.
- पृथ्वी के हरित आवरण में वृद्धि करने का प्रयास तथा पेड़ पौधों के संरक्षण के लिए विशेष ठोस कदम उठाये जाने चाहिए.
ध्वनि प्रदूषण क्या है – what is sound pollution
ध्वनि एक संचार माध्यम है. ध्वनि ना हो तो हमारा दैनिक जीवन लगभग असम्भव हो जायेगा, परन्तु यही ध्वनि अगर परेशान करने लगे तो उसे शोर कहा जाता है.
ध्वनि प्रदूषण की परिभाषा यह है कि – ध्वनि के कई ऐसे स्तर जो अत्यधिक अवांछित व लाऊड होते हैं. जिनसे परेशानी होती है. और श्रवण क्षमता को आहात पहुँचता है. ध्वनि प्रदूषण कहलाता है.
मनुष्य द्वारा उत्पन्न शोर, औद्योगिक मशीनों, यातायात वाहनों, ध्वनि प्रवर्धक पटाखों, औद्योगिक अधिस्फोट धार्मिक एवं सामाजिक समारोह इत्यादि से ध्वनि प्रदूषण होता है.
नोट : नीचे शोर से संबंधित तालिका दी हुई है जो यह दर्शाती है कि शोर की एक निश्चित सुरक्षित समय सीमा का एक मानक तय किया गया है. शोर अगर इससे अधिक होता है तो यह बहरेपन का कारण बन सकता है.
क्षेत्र | दिन के समय शोर | रात के समय शोर |
---|---|---|
शांत क्षेत्र | 50 डेसिबल | 40 डेसिबल |
आवासीय क्षेत्र | 50 डेसिबल | 45 डेसिबल |
व्यवसायिक क्षेत्र | 65 डेसिबल | 55 डेसिबल |
औद्योगिक क्षेत्र | 70 डेसिबल | 70 डेसिबल |
ध्वनि प्रदूषण के प्रकार – types of sound pollution
अध्ययन क्षेत्र के आधार पर ध्वनि प्रदूषण –
- ग्रामीण ध्वनि प्रदूषण
- उप नगरीय ध्वनि प्रदूषण
- नगरीय ध्वनि प्रदूषण
- औद्योगिक ध्वनि प्रदूषण
- खनिज संसाधनों की खानों की ध्वनि प्रदूषण
स्त्रोतों के आधार पर ध्वनि प्रदूषण –
- प्राकृतिक स्त्रोतों से ध्वनि प्रदूषण
- समय समय पर होने वाला ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव – bed effects of sound pollution
अत्यधिक शोर से सबसे ज्यादा निकसान कानों को होता है. और श्रवण शक्ति स्थायी व अस्थायी रूप से प्रभावित होता है. जिसे प्रायः temporary threshold shift कहते हैं. इससे ग्रस्त व्यक्ति केवल मामूली ध्वनियों को ही सुन सकता है.
लेकिन कुछ माह बाद श्रवण शक्ति आमतौर पर वापस आ जाती है. महाराष्ट्र में जहाँ गणपति पूजा के दौरान दस दिनों तक कान फाड़ संगीत चलता है. गणेश मंडपों के आस-पास रहने वाले व्यक्ति अक्सर इससे प्रभावित हो जाते हैं.
80 डेसिबल से कम की ध्वनियों से बहरापन नहीं आता. लेकिन 80 से 130 डेसिबल के अस्थायी प्रभाव देखे गए हैं. काम के दौरान 95 डेसिबल की ध्वनि के संपर्क में आने वाले लगभग 50% व्यक्ति अस्थायी बहरेपन का शिकार होते हैं.
और 105 डेसिबल से अधिक ध्वनियाँ सुनने वाले कुछ सीमा तक स्थायी बहरेपन से ग्रस्त होते हैं. 150 डेसिबल या इससे अधिक की ध्वनि मनुष्य के कानों के पर्दे फाड़ देती हैं.
ध्वनि प्रदूषण का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव – Effects of noise pollution on mental health
शोर के कारण चिढ़, चिंता व तनाव और तनाव जैसे मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा होते हैं. ध्यान केंद्रित करने की असमर्थता और मानसिक थकान सोर के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संबंधित प्रभाव है. उच्च ध्वनि से ,मानवों में उच्च ताप, माइग्रेन, उच्च कोलेस्ट्रॉल, पेट का अल्सर, चिड़चिड़ापन अनिद्रा, अधिक आक्रामक व्यवहार तथा अन्य मनोवैज्ञानिक दोष पैदा होते हैं.
ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण – control of sound pollution
- स्त्रोत से शोर से कमी करके
- शोर के रास्ते को बंद करके
- रास्ते की लम्बाई बढाकर
- शोर ग्रहण करने वाले को सुरक्षित बनाकर
रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है – what is radioactive pollution in hindi
रेडियोधर्मी पदार्थों के कारण उत्पन्न प्रदूषण को रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं. यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम, आदि तत्वों से स्वतः ही रेडियोधर्मी प्रदूषण निकलता रहता है. रेडियोधर्मी प्रदूषण को रोन्टजेन व रैम कहते हैं.
20 मिली रैम तक का विकिरण जीवधारियों के लिए हानिकारक नहीं होता है. परन्तु इससे अधिक का विकिरण हानिकारक साबित हो सकता है. सामान्य एक्स रे में 5 से 6 रैम विकिरण होता है.
रेडियोधर्मी प्रदूषण के माध्यम – sources of radioactive pollution
- मानवजनित
- प्रकृति जनित
मानवजनित स्त्रोत
इस प्रकार का रेडियोधर्मी प्रदूषण मुख्यतः परमाणु रिएक्टरों से होने वाले रिसाव, नाभिकीय प्रयोग, ओसधी विज्ञान, रेडियोधर्मी पदार्थ के उत्खनन, रेडियोधर्मी अपशिष्टों के निपटान तथा परमाणु बमों के विस्फोट से होता है.
इसके अतरिक्त एक्स किरणों का विकिरण चिकित्सा, रेडियोएक्टिव पदार्थों के औद्योगिक औसधीय और अनुसन्धान उपयोग से भी इसका जन्म होता है.
प्राकृतिक जनित
पृथ्वी के गर्भ में दबे रेडियोधर्मी पदार्थों तथा सूर्य की किरणों के कारण प्रकृतिजन्य रेडियोधर्मी प्रदूषण होता है. रेडियम, थोरियम, यूरेनियम, के रेडियोसक्रिय न्युकलाइड तथा पोटेशियम और कार्बन के समस्थानिक मृदा शैल वायु व जल में अति सामान्य है. समुद्र तलछट में साधारणतः रेडियो सक्रिय न्यूक्लाइड़ की उच्च सांद्रता होती है.
रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्परिणाम – bad effects of radioactive pollution
रेडियो सक्रिय पदार्थ सबसे खतरनाक पदार्थ है. रेडियम आर्सेनिक से 25000 गुना अधिक घातक है. तथा इसके प्रभाव कई पीढ़ियों तक चलते हैं.
हानिकारक विकिरण
अल्फ़ा, बीटा, गामा तथा एक्स किरणे इनमे परमाणु में से इलेक्ट्रानों को उखाड़ फेकने के लिए पर्याप्त ऊर्जा होती है. जिससे आयन बन जाते हैं. और इसीलिए इसे आयनकारी विकिरण कहते हैं. देह ऊतक में जल तथा अन्य आयनों के आयनीकरण से मुक्त मूलक बन जाते हैं जो लगभग तुरंत ही अन्य अणुओं के साथ अभिक्रिया करते हैं.
रेडियोधर्मी प्रदूषण का नियंत्रण – control of radioactive pollution
- परमाणु अस्त्रों के प्रयोग व परीक्षण पर रोक लगाकर
- परमाणु अपशिष्टों के निस्तारण को निरापद व्यवस्था करके
- परमाणु संयंत्रों के निर्माण में बेहतर तकनीक का प्रयोग कर जिससे की रिसाव ना हो.
- मानव प्रयोगों उपकरणों को रेडियोधर्मिता से मुक्त करके
- चश्मे आदि लगाकर uv विकिरणों से बचाव करके
FAQ
प्रदूषण क्या है और उसके प्रकार?
पर्यावरण में अवांछनीय तत्वों का मिल जाना जिससे पुरे पर्यावरण को नुकसान हो प्रदूषण कहलाता है, प्रदूषण अनेक प्रकार के होते हैं जैसे – मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण इत्यादि.
प्रदूषण क्या है प्रदूषण से होने वाली समस्या बताइए?
प्रदूषण का तात्पर्य पर्यावरण में ऐसे चीजों का मिश्रण से है जो पर्यावरण के अंदर सजीव और निर्जीव दोनों को हानि पहुचाये, प्रदूषण से होने वाली समस्याएं अनेक है. विभिन्न प्रकार की बिमारियों के साथ मनुष्य का उम्र कम हो जाना पर्यावरण प्रदूषण का ही नतीजा है.
आखिर में
आशा करते हैं आपको हमारा यह लेख प्रदूषण क्या है सम्पूर्ण जानकारी (what is pollution in hindi) पसंद आये व आपके काम आये
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