इस लेख में दो नीति कथा (प्रेरक प्रसंग) दिया हुआ है जिन्हे पढ़कर आपको केवल और केवल ज्ञान व सीख प्राप्त होगा इसलिए इन प्रसंगों को पूरा अवश्य पढ़ें और इनसे ज्ञान ग्रहण कर अपने जीवन में उतारें –
- विश्वास सोंच समझ कर करें – प्रेरक प्रसंग (नीति कथा)
- नहीं गिलहरी ने सागर पे पुल बनाया – प्रेरक प्रसंग (नीति कथा)
विश्वास सोंच समझ कर करें – नीति कथा, प्रेरक प्रसंग
किसी जंगल में बरगद का एक बहुत ही बड़ा पेंड था जिसकी सखायें दूर-दूर तक फैली हुई थी। उस वृक्ष पर बहुत से पक्षियों और जीव जंतुओं ने अपना बसेरा बना रखा था। उस पेंड की जड़ में एक बुद्धिमान चूहा रहता था जिसका नाम पालित था उसने सौ द्वारों वाला अपना बिल बना रखा था। उसी पेंड पर लोमश नामक एक बिलाव भी रहता था जंगली जीव-जंतुओं का वहा आना जाना लगा ही रहता था।
उसी जंगल में एक चांडाल भी अपना घर बनाकर रहता था वह रोज बरगद के आस-पास अपना जाल बिछा देता था व जानवरों को फसाने के लिए चारा डाल दिया करता था और घर जाकर आराम से सोया करता था यह उसका रोजाना का काम था।
इसी तरह एक दिन चांडाल ने बरगद बरगद पेंड के नीचे अपना जाल बिछाया उसमे चारा डाला और वहां से चला गया। उस दिन असावधानीवस बरगद पेंड में रहने वाला लोमश बिलाव उस जाल में फंस गया वह जितना जाल से निकलने की कोशिस करता उतना ज्यादा फसता जाता था। जब चूहे ने बिलाव को जाल में फंसा देखा तो वह बहुत खुश हुआ और निडर होकर चारो तरफ घूमने लगा।
बिलाव के फसने से मन ही मन खुश चूहा खाने की लालच में अपने बिल से दूर निकल गया। जाल के करीब जाकर जैसे ही वह बिल की तरफ घुमा उसने देखा कि उसका एक और परमशत्रु नेवला जो उसी वृक्ष के नजदीक रहता था चूहे को खाने के लिए घात लगाकर बैठा हुआ है।
अब चूहे के लिए बड़ी समस्या पैदा हो गयी एक तरफ बिलाव है जो जाल में पंसा हुआ है और दूसरी तरफ नेवला जो चूहे के शिकार के लिए घात लगाए बैठी है इतने में चूहे ने देखा की पेंड की शाखा पर उसका एक और दुश्मन उल्लू उसकी तरफ नजर गड़ाए बैठा है।
अब चूहे के सामने एक दो नहीं तीन शत्रु थे, एक तरफ जाल में फंसा बिलाव, दूसरी तरफ नेवला और तीसरा पेंड पर बैठा उल्लू जो चूहे के ऊपर नजर गड़ाया हुआ था। चूहे के सामने तो जैसे मौत ही आ खड़ी हो। परन्तु वह चूहा था बुद्धिमान व नीतिवान उसने दिमाग लगाया की कोई ऐसी नीति अपनाई जाये जिससे जान बच जाये।
शास्त्रों में भी कहा गया है बुद्धिमान और नीतिवान व्यक्ति हजार विपत्ति आने पर भी हार नहीं मानता बल्कि उस विपत्ति से सामना करने के लिए नीति का निर्माण करता है।
चूहे ने इस संकट के समय में नीति से काम लेने की सोंची और उसने विचार किया की – बिलाव उसका जन्मजात दुश्मन है, परन्तु वह तो अभी खुद ही जाल में फंसा हुआ है और उसे भी अपनी जान और उसे भी अपने प्राणो की रक्षा करनी है। अगर मै बिलाव के पास जाता हूँ तो नेवला और उल्लू से तो मेरी प्राणो की रक्षा हो ही जाएगी और बिलाव को भी कुछ प्रलोभन देकर मना लूंगा।
चूहा अपनी इसी निति के अनुसार बिलाव के पास गया और उससे बोला – भैया बिलाव, इस समय आपका जीवन संकट में फंसा हुआ है सुबह होते ही चाण्डाल आएगा और आपको मारकर ले जायेगा। ठीक आपके सामान मेरा भी जीवन संकट में फंसा हुआ है नेवला और उल्लू मुझ पर घात लगाए बैठे हुए हैं।
आप और मै मित्रता कर लेते हैं तो आपके और मेरे प्राणों की रक्षा हो सकती है परन्तु आपको यह वचन देना होगा कि आप मुझे मारेंगी नहीं। अगर यह सर्त आपको मंजूर होगा तो मै यह जाल काट दूंगा।
चूहे ने बिलाव को फिर समझाते हुए कहा – सज्जन और ज्ञानी पुरुषों के साथ तो सात कदम चलने पर ही मित्रता हो जाती है। फिर हम और आप तो सदा से ही इस पेंड में रहते आये हैं। आप मेरे विद्वान मित्र हैं मै इतने दिनों से आपके साथ रहा हूँ अतः आज संकट के समय में आपके साथ मित्रता धर्म निभाउंगा इसलिए आपको डरने की आवश्यकता नहीं है।
चूहे की बात सुनकर बिलाव प्रसन्न हो गया उसने कहा कि मुझसे तुम्हे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस संकट से तुम मुझे निकालोगे तो यह मेरे ऊपर तुम्हारा महान उपकार होगा, और उपकार करने वाले का कभी भी अहित नहीं किया जाता तुम जल्द ही यह जाल काटकर मुझे आजाद करों फिर मै तुम्हारे प्राणो की रक्षा करूँगा।
अब बिलाव की बाते सुनकर चूहा को थोड़ा राहत मिला वह निडरता के साथ बिलाव के गोद में बैठ गया, बिलाव ने भी उसे अपने भीतर छुपा लिया।
यह सब देखकर नेवला और उल्लू आश्चर्य चकित हो गए, उनका शिकार अब हांथो से निकल चूका था और दोनों को बिलाव से प्राणो का खतरा भी था सो बिलाव और नेवला वहां से पतली गली पकड़ कर निकल लिए।
इस तरह चूहे ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करके दो शत्रुओं से छुटकारा पा लिया था परन्तु अभी भी खतरा टला नहीं था क्योंकि चूहा इस समय बिलाव के गोद में था और बिलाव से प्राणों का रक्षा करना बाकि था।
चूहा बहुत ही बुद्धिमान था उसने सोंचा कि – यदि में जल्द ही जाल काट दूंगा तो हो सकता है जाल से आजाद होने के बाद बिलाव निडर हो जाये और मुझे ही मार दे इसलिए मै इसके गोद में ही रहकर धीरे-धीरे जाल को उस समय तक काटता रहूँगा जब तक सवेरा ना हो जाये।
अब चूहा उस जाल को धीरे-धीरे काटने में लग गया, सवेरा होते देख बिलाव ने चूहे को जल्दी-जल्दी जाल काटने को कहा। परन्तु चूहा अपने नीति के अनुसार धीरे-धीरे जाल कटता रहा और बिलाव से अपने प्राणों की रक्षा करता रहा।
सुबह होते ही चाण्डाल हाँथ में हथियार लिए कुत्तों के साथ उस जाल की ओर बढ़ने लगा, चूहे ने जाल के केवल कुछ ही तंतु बचाये थे। चाण्डाल को आता देख उस बचे तंतुओं को भी काट दिया। बिलाव बेचारा चाण्डाल को देखकर वैसे भी घबराया हुआ था चूहे का शिकार करने के बजाय अपना जान बचाना जरुरी समझा और पेंड की ओर भाग खड़ा हुआ। मौका देखकर चूहा भी अपनी बील की तरफ भागा।
बरगद पेंड के अंदर पहुंच कर बिलाव ने चूहे से कहा कि – हे मेरे मित्र, तुम्हे मुझसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुमने मेरी जान बचायी है इसलिए मै तुम्हारा कभी भी अहित नहीं करूँगा, तुम इस पेंड पर कभी भी और कहीं भी आ जा सकती हो।
चूहा बहुत ही बुद्धिमान था उसने अपने प्राणों की रक्षा के लिए सौ द्वारा वाला बिल तैयार किया था ताकि अगर बिल में सर्प भी आ जाये तो उससे अपने प्राणो की रक्षा कर सके वह भला बिलाव की बातों में कहाँ फसता उसने बिलाव से कहा – आप सचमुच महान हैं आपने मेरे प्राणों की रक्षा की है।
मैने आपकी बातों को बड़े ध्यान से सुना परन्तु मै आपको बताना चाहता हूँ कि जिस तरह मुझे अपने प्राणों का भय है उसी प्रकार आप को भी चाण्डाल से भय होना चाहिए, कहीं वह फिर आकर आपके प्राणों का भक्षण ना कर ले, आपको तो अपना बसेरा कही और बना लेना चाहिए।
चाण्डाल का नाम सुनकर बिलाव डर गया चूहे कि बात को सहीं मानकर उसने अपना आसियाना दूसरी जगह बना लिया। इस तरह अपनी नीति और ज्ञान का प्रयोग करके चूहे ने केवल तात्कालिक नहीं बल्कि दीर्धकालिक समस्या को भी हल कर दिया।
विश्वास सोच समझ कर करें नीति कथा – प्रेरक प्रसंग से क्या सीख मिलता है
संकट व समस्या के समय व्यक्ति को कभी भी अपना आवेश नहीं खोना चाहिए बल्कि संकट से किस प्रकार मुक्ति पाया जाय इस पर विचार करना चाहिए।
व्यक्ति अपनी आत्मबल और नीति से बड़ी से बड़ी समस्याओं का हल निकाल सकता है। जिस प्रकार पालित नामक चूहे ने अपने प्राणों की रक्षा की। दुश्मन से किसी भी कार्य में मित्रता करते समय बहुत ही सावधानी से काम लेना चाहिए और अपना काम होने के बाद शत्रु पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
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नन्ही गिलहरी ने सागर पे पुल बांधा – नीति कथा, प्रेरक प्रसंग
बात उस समय की है जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था और प्रभु श्री राम ने लंका पर चढ़ाई की घोषणां कर दी थी। परन्तु लंका तक पहुंचे के लिए श्री राम को समुद्र पार करना जरुरी था, सभी परेशान थे की आखिर समुद्र को पार कैसे किया जाये।
तब भगवान राम ने समुद्र से हाँथ जोड़ कर प्राथना की के हमें सागर को पार करके लंका जाना है, हे समुद्र देवता कृपया करके कोई मार्ग सुझाएँ।
परन्तु समुद्र राज ने भगवान श्री राम की बातों को अनसुना कर दिया, तब श्री राम ने अपना धनुष बाण निकाला और समुद्र को सुखाने का निश्चय कर लिया,
तब सागर राज ने हाँथ जोड़कर भगवान राम से विनती की, हे प्रभु ऐसा ना कीजिये अगर समुद्र का पानी सुख जायेगा तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जायेगा।
प्रभु आपकी सेना में नल और नील नाम के दो वानर भाई हैं, उन्हें वरदान प्राप्त है की उन्हें द्वारा जिस भी पत्थर का हाँथ लगाया जायेगा वह पानी में तैरेगा। सो प्रभु आप नल और नील की सहायता से सागर पर पुल बनवाइए, इस प्रकार मेरा भी अस्तित्व बना रहेगा।
फिर क्या था, नल और नील की सहायता से पुल बनाने का कार्य प्रारम्भ हो गया।
उसी जगह पर एक पेड़ था जिसमे एक गिलहरी रहती थी, वह गिलहरी बहुत चंचल मिजाज की थी, जब उसने देखा की वानर पत्थर उठा-उठा कर समुद्र में डाल रहे हैं। तो गिलहरी ने एक वानर से इसका कारण पूछा।
वानर ने बताया, की रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है उन्हें छुड़ाने के लिए हमें समुद्र पार करके लंका जाना है, इसलिए हम यह पुल बना रहें है।
इस पर गिलहरी ने कहा- हम भी आपकी मदद करेंगे।
गिलहरी की बात सुन वानर हंसने लगा और बोला तुम इतनी छोटी हो तुम क्या हमारी मदद करोगी। तो गिलहरी ने आत्म विश्वास से कहा कि छोटे भी तो बड़ों की मदद करते हैं।
और फिर गिलहरी ने बिना देरी किये अपने कार्य में लग गयी। वह समुद्र में जाकर डुबकी लगाती जिससे उसका बदन गिला हो जाता फिर बाहर आकर रेत में लोटती और समुद्र के पास जाकर अपने बदन पर चिपके हुए रेत को झाड़ देती, गिलहरी लगातार यह कार्य करती रही।
भगवान राम गिलहरी की मन के भाव को समझ गए की गिलहरी शरीर पर चिपके रेत के कण को समुद्र में झाड़कर पुल बनाने में मदद कर रही थी।
फिर पुल बनकर तैयार भी हो गया, सभी वानर अत्यंत खुश थें, गिलहरी भी उसमे शामिल थी वह मन ही मन बहुत खुस थी की पुल बनाने में उसने भी मदद की।
भगवान राम ने अत्यंत स्नेह से गिलहरी को उठा लिया और कहा कि, तुम छोटी जरूर हो मगर तुमने एक बड़े काम को पूरा करने में हमारी मदद की है। तुम्हे हमेशा याद रखा जायेगा, ऐसा कहते हुए श्री राम ने प्यार से गिलहरी की पीठ को सहलाई।
उनकी उँगलियों से गिलहरी की पीठ पर लगी रेत तीन जगह से झड़कर गिर गयी और गिलहरी की पीठ पर धारियां बन गयी, जो गिलहरी की पीठ पर धारियां दिखाई देती है।
कहानी का तात्पर्य है भावो को समझना और प्रयास करते रहना है, कोई कितना भी छोटा क्यों ना हो अगर आत्मविश्वास के साथ प्रयाश किया जाये और निरंतर कार्य में लगा रहे तो सफलता अवश्य मिलती है…
बेसक नन्ही गिलहरी ने उतना भी अधिक सहयोग ना दिया हो परन्तु उसका विश्वास और कार्य के प्रति लगन व आत्मविश्वास सराहनीय था इससे जरूर हमे सिख लेनी चाहिए।
आखिर में
हमें पूरी उम्मीद है कि आपने इन दो नीति कथाओं को पढ़कर इनसे सीख लिया होगा, जो आपके जीवन में कही ना कही उपयोगी साबित होगा, हमारे अन्य प्रेरक प्रसंगों और हिन्दी कहानियों का मजा लेने के लिए आप हमारे टेलीग्राम ग्रुप को join कर सकते हैं जिसका लिंक नीचे दिया हुआ है,
हमारा अनुरोध है कि इस नीति कथा को अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ अवश्य shear करें, ताकि वे भी इसका आनंद ले सकें। रोजाना जानकारी से भरे लेख पाने के लिए informationunbox.com पर अवश्य पधारें – धन्यवाद,