जैसे बिना ढील दिए कोई पतंग नहीं उड़ती, वैसे ही बिना छूट दिए कोई बच्चा चलना नहीं सीखता, आपको अपने बच्चे को पंख देना है, उड़ना तो वह खुद ही सिख जाएगा.
परवरिस और पतंगबाज़ी में ज्यादा फर्क नहीं है, दोनों में ढील देना आवश्यक है. साथ ही कितने पर खींचना है यह मालुम होना चाहिए, नहीं तो कटने का भी खतरा रहता है.
आप ढील नहीं दोगे तो पतंग उड़ेगी नहीं,,, ठीक उसी प्रकार आप बच्चे को स्वतंत्रता नहीं दोगे तब वह अपने सपनो के पीछे भागना नहीं सीख पायेगा. वैसे भी बिना संस्कार के सफलता सजती भी नहीं है. इसलिए बच्चे को अच्छे संस्कार देना भी अनिवार्य है.
परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कही नम्रता के आड़ में आपका बच्चा दब्बू तो नहीं होता जा रहा है.
विनम्रता एक आभूषण है. जो प्रत्येक व्यक्ति पर सजता है. इसे सिखाने की शुरुआत शिष्टाचारों की मुलभुत सिद्धांतों से होती है. इसलिए प्लीज्, थैंक्यू, धन्यवाद जैसे शब्दों का प्रयोग आवश्यक है. और शिष्टाचार सिर्फ बड़ों के साथ ही नहीं अपने मित्रो, बड़े भाई बहनों बुजुर्गो आदि के साथ भी इसका प्रयोग करना आना चाहिए.
एक बच्चा शिष्टाचार अपने माता-पिता से ही सीखता है. अगर माता-पिता का आचरण व्यवहार ठीक रहेगा तब बच्चे को बताना भी नहीं पड़ेगा वह खुद ब खुद सिख लेगा.
ज्यादातर माँ-बाप बच्चे को शिष्टाचार सीखाने के चक्कर में उनके साथ सख्ती बरतने लगते है. ऐसे में बच्चे घबराने लगते है. कई बार बच्चो का शर्मीलापन और संकोची व्यवहार अपनी भावनाओ को छुपाने का एक आवरण होता है. गौर कीजिये ऐसा उन घरो में होता है. जहा बच्चे की बार-बार किसी दूसरे बच्चे से तुलना की जाती है और उन्हें ताना मारा जाता है.
याद रखें की बच्चे के परवरिश में आपके पास दो मार्ग है, एक ओरप्रशंसा और उत्साह वर्धन तो दूसरी ओर ताना और तुलना. आप अगर प्रशंसा चुनते है तो बच्चे की जिंदगी को आसमान की उचाईयों में उड़ने देंगे, और ताना उसके मन को निरास कर देगा.
उसका दिल टूट जाएगा, इसलिए बच्चे को जब भी ताना दे, अत्यंत सावधान रहे क्योंकि उसका कोमल मन आहत होने वाला है, परन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है की आप की डांट फटकार से आपका बच्चा मंज़िल की ओर दुगनी गति से बढ़ता है.
बच्चों की परवरिश और दब्बूपन के उपचार के लिए इन तरीकों को अपनाएं –
1. बच्चो में आत्मविश्वास कम क्यों है
बच्चे का दब्बूपन यह बताता है की उसे अपने ऊपर विश्वास की कमी है, उसके मन में हमेसा यह ख्याल रहता है की वह जो भी कार्य करता है वह अच्छा नहीं होता है, उसे हमेसा लगता है की दूसरे बच्चे उससे बेहतर है, ये सब हीन भावना बच्चे के मन में रहता है वह खुद को दुसरो से कम आंकता है।
2. बच्चों ये काम आपसे नहीं हो पायेगा
कई बार माता-पिता और शिक्षक बच्चो को कुछ कार्य करने के पहले ही टोंक देते है की तुमसे नहीं होगा, आप ये क्यों नहीं सोचते की कार्य होगा या न होगा बच्चे आप कोसिस तो करो, अगर आप ध्यान दोगे छोटे-छोटे फैसले आपके बच्चे का विकास करता है।
आपको चाहिय्रे की आप बच्चो का हौसला बढ़ाये, बच्चे सूरजमुखी के फूल की तरह है जिस तरह सूरजमुखी खिलने से पहले सूरज की ओर देखता है वैसे ही बच्चे भी हर कार्य के पहले माँ-बाप की ओर देखते है।
3. बच्चे को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित माता-पिता
कई बार माता-पिता बच्चे का हौसला बढ़ाने में कमी नहीं करते, उसे कोई कार्य करने ही नहीं देते है, ऐसे माता-पिता बच्चे को लेकर इतना चिंतित रहते है की वे बच्चे को एक पल की भी छूट नहीं देते। बच्चा पल पल में क्या कर रहा है, उसके दोस्तों की भी पुरे चरित्र की डायरी ऐसे माता पिता के पास होतें है।
ऐसे स्थिति में सारे दोस्त उससे दूर होने लगते है और बच्चा संकोच में दब्बूपन को चुन लेता है। तो दोस्तों कृपया करके अपने बच्चे को हिम्मत दे। उन्हें दबाये नहीं निचे जानते है की बच्चे का विकास कैसे किया जाए और उसे दब्बूपन से कैसे बचाया जाए –
4. अपने बच्चे में आत्म विश्वास कैसे जगाये
आत्म विश्वास जिंदगी का सबसे बड़ा सबक है। आत्म विश्वास से खुद पर भरोसा होता है और वही भरोसा कुछ कर दिखाने की हिम्मत रखता है। बाधाएं जब उसकी सफलता के बीच में आती है तब उसे पता होता है की यह समस्या जाने के लिए ही आयी है। खुद पर विश्वास से ही दुसरो पर भरोसा किया जा सकता है।
5. अपने बच्चे को जिम्मेदार बनायें
बच्चे को जिम्मेदार बनाने के लिए उसे जिमेदारिया निभाना सिखाना होगा। तभी तो बच्चा चुनौतियों से निपट पायेगा। बच्चे का हौसला बढ़ाये उसे खेल कूद में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करे और समय-समय पर छोटे मोटे काम भी दे बच्चो को। अगर बच्चा वह कार्य कर लेता है तो उसकी प्रसंसा करे, और नहीं भी कर पाता है तो उसे कैसे करना है ये बताये उन्हें प्यार से समझाये.
6. बच्चे और उनके दोस्तों को प्यार सम्मान दें
सम्मान सब्द का अर्थ है की समान मात्रा में मान होता है, बच्चे की भावनाओ का कद्र करे उनकी बातों को ध्यान दे और उनके दोस्तों के साथ अच्छे से बात करे, बच्चा खुद को ख़ास महसूस करेगा और उसका विश्वास खुद ब खुद बढ़ जाएगा।
7. बच्चो को ग्रुप एक्टिविटी कराएं
बच्चो को ग्रुप एक्टिविटी के लिए प्रोत्साहित करें दब्बू बच्चे अकेले रहना पसन्द करते है, पर अकेले रहने से सोशल स्किल का विकास नहीं हो पाता है। बच्चे जब स्कूल में नाटक, खेलकूद, पिकनिक, जैसे कार्यक्रम में सम्मिलित होते है, तब उनके मन से डर धीरे-धीरे निकलता है और विश्वास आता है.
याद रखिये दोस्तों – बच्चे का दब्बूपन धीरे-धीरे उसके व्यक्तित्व पर ग्रहण बनकर उसे ढक देता है। ऐसे बच्चे जब वयस्क होते है तो उनमे अपने ऊपर विश्वास का अभाव होता है। इससे वे हमेसा जिंदगी में थोड़ा पीछे रह जाते है
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अंतिम शब्द
आशा करतें है की आपको हमारा यह लेख दब्बूपन से बच्चे को बचाएं, बच्चों की परवरिश कैसे करें बच्चों की परवरिस संबंधित टिप्स. पसन्द आये, और आपके काम आये.
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